Tuesday, September 10, 2013

थाम लो एक बार फि‍र.....


छीज रही है
मेरे अंदर से
वो सभी कोमल भावनाएं
जो तुम्‍हारे होने से
भर गई थी मुझमें

आओ 'नील'
थाम लो
एक बार फि‍र
फूंक दो अपनी सांसे
मेरे नि‍ष्‍प्राण होते
बदन में

खुरदरे हो आए अंतस को
सहला दो
भर दो मुझमें प्रेमावेग
अपने जादुई व्‍यक्‍ति‍त्‍व के
प्रभाव से

ले जाओ मुझे
स्‍वर-लहरि‍यों की
कश्‍ती में बि‍ठाकर
प्रेम के गांव में

कि भावनाओं का छीजना
तुमसे दूर होना
प्रेम-स्रोत का सूख जाना
वैसा ही है जैसे
सरस्‍वती का थार में
वि‍लुप्‍त हो जाना.....


तस्‍वीर..साभार गूगल 

10 comments:

Unknown said...

बहुत सुन्दर एवम् भावपूरित

अज़ीज़ जौनपुरी said...

बहुत सुन्दर

Unknown said...

बहुत खूब !
बधाई स्वीकार करें !

हिंदी फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !

Anonymous said...

वाह वाह क्या बात है

Anonymous said...

वाह वाह क्या बात है

Aparna Bose said...

speechless … बहुत उम्दा… एक एक शब्द दिल के तारों को झंकृत करता हुआ…

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी यह प्रस्तुति 12-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत है
कृपया पधारें
धन्यवाद

Unknown said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन

मेरा मन पंछी सा said...

बेहद सुन्दर..
लाजवाब..:-)

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
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