आए थे तुम
पुरवाई सी बन के
मेरी सांसों में समाकर
हृदय-स्पंदन बन गए हो
रूप-अरूप सा था सामने
मेरे अभिरूप तुम
मेरी आंखों में समाकर
काजल से बन गए हो
जेठ की दोपहर सा जीवन
पीपल की ठंडी छांव मिली
मेरी बांहों में समाकर
पवित्र गंगोत्री बन गए हो
मेरे होठों की ध्वनि में
समाहित है
ईश-प्रार्थना सा तुम्हारा नाम
मेरी हर रोम में समाकर
शिराओं में बहता सा
उफनता सा रक्त बन गए हो
प्यार की शीतल बयार के
अभिव्यक्त बन गए हो... तुम
पुरवाई सी बन के
मेरी सांसों में समाकर
हृदय-स्पंदन बन गए हो
रूप-अरूप सा था सामने
मेरे अभिरूप तुम
मेरी आंखों में समाकर
काजल से बन गए हो
जेठ की दोपहर सा जीवन
पीपल की ठंडी छांव मिली
मेरी बांहों में समाकर
पवित्र गंगोत्री बन गए हो
मेरे होठों की ध्वनि में
समाहित है
ईश-प्रार्थना सा तुम्हारा नाम
मेरी हर रोम में समाकर
शिराओं में बहता सा
उफनता सा रक्त बन गए हो
प्यार की शीतल बयार के
अभिव्यक्त बन गए हो... तुम
8 comments:
वाह वाह क्या बात है
सुंदर सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति!!
RECENT POST : बिखरे स्वर.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति प्रेम की..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
क्या बतलाऊँ अपना परिचय ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004
थोडी सी सावधानी रखे और हैकिंग से बचे
बहुत सुंदर .
साधू-साधू
behad khoobsurat abhivyakti!
सुन्दर प्रस्तुति
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