Wednesday, January 30, 2013

उसकी आवाज और.....वो


एक ति‍लि‍स्‍म है
वो आवाज
जब उतरती है
तो
रूह तक पहुंचती है

गूंजती है
पहाड़ि‍यों में गुम कि‍सी आवाज की तरह
जि‍से छोड़ आता है
प्रेमि‍का की याद में...आस में
एक प्रेमी
जो यकीन करना चाहता है
दंतकथाओं पर
कि
कई जन्‍मों के बंधन पार कर
वो आएगी एक दि‍न

गहरी आवाज
कभी घाटि‍यों में उतरती झरने सी
मंदि‍र में बजती घंटि‍यों सी
या शाम की अज़ान सी

कभी इतनी प्‍यासी
कि सुनकर
नखलि‍स्‍तान बनने की कामना जागे

एक ति‍लि‍स्‍म
एक ज़ादू
उसकी आवाज
और.....वो....................।

तस्‍वीर--साभार गूगल

Tuesday, January 29, 2013

तेरा इंतजार....


अंतहीन उदासि‍यां
बेलौस इंतजार
बगैर इक़रार के
खूब सारा प्‍यार

अनदेखे मुस्‍कराहट की चौड़ाई
हथेली के नाप से
समझ आने लगे
दि‍ल की धड़कनें
हवाओं की सरसराहट से
बढ़ जाने लगे
पूनो का चांद
बेहद चमकीला नजर आने लगे

आंखों में इंतजार
सरका के जाने वाले
मानते हो मेरी बात

जानां
प्रेम में होना सच में बुरा नहीं होता .......

तस्‍वीर--साभार गूगल

Monday, January 28, 2013

दामि‍नी.....नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय



मत करो दामि‍नी
तुम कि‍सी इंसाफ का इंतजार
नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय

उम्र कच्‍ची थी उसकी
इसलि‍ए जुर्म बड़ा नहीं
क्‍या हुआ जो उसने कि‍या
तुम्‍हारे दामन को तार-तार
सरि‍या को तुम्‍हारे अंग के पार

बेचारा नादान है
बच्‍चा है
स्‍कूल सर्टिफिकेट ने कहा
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने माना
छूट गया वह

दुर्दांत है तो क्‍या
है तो कमउम्र..मासूम
और नाबालि‍ग को सजा
इस देश का कानून नहीं देता

देश के नाबालिगों
मेहनत मजदूरी मत करना
मगर
कर सकते हो बलात्‍कार
है तुम्‍हें सरकारी छूट....

मत करो दामि‍नी
तुम कि‍सी इंसाफ का इंतजार
नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय

तस्‍वीर--साभार गूगल

उसने कहा था....


बहुत गुस्‍ताख़ हो जाती है
वो रात
जो तेरे इशारे पर नहीं चलती

चांद के बहाने से
खामोश रात की तरफ
एक चुंबन उछाल दि‍या उसने
यूं लगा अमावस में भी
धनक फैल गई

अब समेट लो हसरतें सारी
एक मुहंबंद खूबसूरत सी थैली में
याराना है रात से
कल फि‍र बि‍छेगी बि‍सात
प्रेम का खेला..शह और मात

दरअसल उसने कहा था
दि‍न शुभ हो...शामें अच्‍छी
कोरी रही रात ने की मुझसे
बेइंतहा शि‍कायतें
मेरी हथेली में कैद है उसका चुंबन
और
दि‍न-रात से परदेदारी है मेरी......

तस्‍वीर--साभार गूगल

Sunday, January 27, 2013

तेरा अहसास.......

कभी-कभी यूं भी होता है कि आप सच्‍चे मन से..दि‍ल की गहराईयों से कि‍सी को याद करें....और दस्‍तक तो हो मगर वो उसकी नहीं होती जि‍सका आपको इंतजार होता है।
आप फोन लि‍ए उनके कॉल के इंतजार में बैठे हों....तभी ट्रिंग-ट्रिंग.....झपटकर फोन उठाओ तो पता चले.....कोई दूसरा है...अनापेक्षि‍त
बातें उनसे भी अच्‍छी लगती हैं जो हमेशा से आपके साथ हैं..मगर दि‍ल तो धड़कता है उन्‍हीं की याद में जिनके लि‍ए पलकें भी झपकने से इंकार करती हैं...

मगर बातें दि‍ल की दि‍ल तक जरूर पहुंचती है....मानती हूं मैं..भले ही कुछ देर लगे

कभी-कभी यूं भी होता है
दि‍ल को पता नहीं होता
और दूर कहीं
जमीं से आस्‍मां मि‍ल रहा होता है

एक पल में कोई कैसे कि‍सी का हो जाता है.....कि‍सी को आंखों में यूं रख लेता है जैसे आंसू, दुनि‍यां में कुछ चीजें अब भी हैं....जि‍न्‍हें समझना बाकी है
अहसास का शुक्रि‍या...

जब भी लि‍या इन होठों ने
आपका नाम लि‍या
ख्‍वाब की तरह उतरे आंखों में
रूह में समा गए

ये हादसा है या सपना.....वक्‍त तय करेगा इसे.....चलो देखते हैं........


तस्‍वीर--साभार गूगल

Saturday, January 26, 2013

सूनी सी शाम


बड़ी सूनी होती है
वह शाम
जब कि‍सी के आमद का हो
बेइन्‍तहा इंतजार
और अपने ही हाथों
घर के साथ
दि‍ल के कपाट भी
बंद करना पड़े
................
जमाना रहगुजर न समझ बैठे कहीं....


तस्‍वीर--उड़ीसा बार्डर के पास एक ढलती शाम की

गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो मित्रों......



गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो मित्रों......

उम्र हमें कुछ देता है तो हमसे हमारा बहुत कुछ छीन भी लेता है....बचपन और उसकी मस्‍ती...
गणतंत्र दि‍वस हो या स्‍वतंत्रता दि‍वस.....एकदम सुबह उठकर पहले नहाना और तैयार होकर स्‍कूल जाना.....सस्‍वर जन-गण-मन का पाठ...खेलकूद....दौड़.....प्रति‍योगि‍ता और सबसे ज्‍यादा याद आता है.....मोतीचूर के लड़डू या बूंदी साथ में नमकीन....ऐसा सुस्‍वाद लगता था जैसे पहली बार खा रहे हों.... ढेर सी टाफि‍यां और फि‍र
....सारा दि‍न मस्‍ती

इत्‍ती सी देर के लि‍ए स्‍कूल जाना और वहां से नि‍कलकर सारा दि‍न सहेलियों के साथ घूमना... बड़ा रोमांच पैदा करता था इस दि‍न के लि‍ए.....
अब तो बस बुद़धू बक्‍से के सामने बैठकर दूरदर्शन कर लि‍ए तो बहुत है.....आज के बच्‍चों में भी न वैसा उत्‍साह है न उनके स्‍कूल जाने की अनि‍वार्यता......
बहुत याद आती है उन दि‍नों की....
एक बार फि‍र से.......शुभकामनाएं...

तस्‍वीर--साभार गूगल

Friday, January 25, 2013

तुम......तुम...


तुम......तुम.....बस तुम

ढलती सांझ में तुम
धवल चांदनी में तुम
चुप सरकती रात में तुम
भोर की पहली कि‍रण में तुम

तुम......तुम.....बस तुम

लबों की हर जुम्‍बि‍श में तुम
आंखों के हर ख्‍वाब में तुम
मुझ तक पहुंची हर आवाज में तुम
आती-जाती हर सांस में तुम

तुम......तुम.....बस तुम



तस्‍वीर--साभार गूगल

Thursday, January 24, 2013

बाबा मेरे - नहीं करना ब्‍याह मुझे


बाबा मेरे
नहीं करना ब्‍याह मुझे

मैं कोलंबस की तरह
दुनि‍या की सैर पर जाउंगी
नहीं दो मुझे तुम दहेज
मत बनाओ जायदाद का हि‍स्‍सेदार
बस मुझे दे दो
एक नाव
जिंदा रहने भर रसद
और ढेर सी कि‍ताबें

बाबा मेरे
दुनि‍या कहती है परकटी मुझे

पढ़ना और हक के लि‍ए लड़ना
क्‍या बुरी स्‍त्रि‍यों के लक्षण हैं...
मेरे हि‍स्‍से का दूध
भाई को पि‍लाने पर भी
मैं बचपन में मां से कभी नहीं लड़ी
तब नासमझ थी मैं,
अब नहीं
क्‍यूं न लडूं अपने अधि‍कार के लि‍ए
क्‍यों न जलाउं अन्‍याय के खि‍लाफ़ मशाल

बाबा मेरे
मैं लज्‍जाहीन नहीं

लड़के कहते हैं
शादी करनी चाहि‍ए
कमअक्‍ल और बेवक़ूफ लड़कि‍यां
जि‍न पर
हुक्‍म चलाया जा सके
उन्‍हें कहां पसंद आती है तर्कपसंद लड़कि‍यां
मुझे चुप रहना नहीं आता...इसलिए

बाबा मेरे
नहीं करना ब्‍याह मुझे

मत बांधो मुझे बंधन में
मैं भोग्‍या नहीं
मैं जागीर नहीं
मैं बंधुआ मजदूर नहीं
मुझे दे दो
मेरे हि‍स्‍से की आजादी
खुली सांस...खुला आसमान
कि मैं
कोलंबस की तरह जीना चाहती हूं......

तस्‍वीर -- साभार गूगल

Wednesday, January 23, 2013

आकाश के माथे का झूमर.....



यादों का ज़मज़म:
मुसलसल गहराता है
पोशि‍दा चांद भी जब
आकाश के माथे का
झूमर बन आता है....

जानते तो हो
कि सुबह से छाई उदासी को
परे सरकाने के लि‍ए
चाहि‍ए होता है
एकमुश्‍त ताजी हवा का झोंका
या
मेंह से सीली धरती से उठती
सोंधी-सोंधी खुश्‍बू

दादी मां ने कहा था एक दि‍न
कि जब
लगातार हो रही हो तलवे में गुदगुदाहट
समझ लेना
कोई बेतरह याद कर रहा है तुम्‍हें
आज मान ही लेती हूं यह बात
कि
कोई मुझे भी याद करता है
तलवे में जाने कब से सुगबुगाहट हो रही है

खुश रहने को ये ख्‍याल......बुरा तो नहीं...



तस्‍वीर----साभार गूगल

Tuesday, January 22, 2013

हैरां हूं मैं....


हैरां हूं मैं
वो कौन सी दुनि‍या है
जहां तुम्‍हारा आशि‍याना है
तुमने जकड़ा है यादों को
या यादों को मोहब्‍बत है तुमसे

गुजरे लम्‍हों का जर्रा-जर्रा
बावस्‍ता है फकत तुमसे

बताओ जरा
पांव के नीचे की नर्म दूब
तुम्‍हारे स्‍पर्श से मुस्‍कराती है या
फूलों की पंखुड़ि‍यों की खुश्‍बू
तुम्‍हारी सांसो से होकर आती है

क्‍या है वो तुममें
जिसने तुम्‍हें डोर
और मुझे पतंग बना दि‍या.....

Monday, January 21, 2013

उब की चि‍ड़ि‍या

उब की चि‍ड़ि‍या
जब भी बैठती है
मन की
टहनी पर
सुनहरी शाम
मटमैली
हो जाती है

ऐसे में
नभ का वि‍स्‍तार
ओक में समाया लगता है
और
छलका पानी
न भि‍गोता है
न कोरा रहने देता है

कैसे उड़ाउं
इस चि‍ड़ि‍यां को
चंद्रमा सा चंचल मन भी
ऐसे में
मचलता नहीं.....



Saturday, January 19, 2013

'मैन इन ब्‍लू'


'मैन इन ब्‍लू'
देखा
कल रात सपने में
आया था
वो
चुप्‍पा इंसान
बातों के टोकरे
उड़ेल रहा था मुझ पर
मोगरे के फूलों की तरह

फूलों की सुगंध
उसकी
बातों की तरह ही
प्‍यारी थी

सागर तट पर
डूबते सूरज और
उसके होने के अहसास की
ललाई से
दमक उठा था मेरा चेहरा

अंतहीन बातें
बि‍ना शि‍कवा
बगैर किसी वादे के
धीरे से
मेरी बि‍खरी लट को
संवार गया
और
जाते-जाते दे गया
एक 'टाइट हग'

धत्‍त..
सर्दियों में कहां खि‍लते हैं
सफेद मोगरे
और सागर तट पर
पांव चूमतीं हैं लहरें
देती नहीं
प्रगाढ़ आलिंगन
चलो...
अब सुबह हो गई...

Friday, January 18, 2013

कहो और क्‍या है......

तुम भले इसे
प्रवाहमयी जीवन में
आई
छोटी सी रूकावट समझो

कह भी लो

मगर जब दि‍न-रात
भरा-भरा सा लगता हो
और

अल्‍लसुबह

नींद से जागने के बाद
जबरन
आंखें मींच कर
घंटों लि‍हाफ़ में पड़़े
कि‍सी के बारे में
लगातार
सोचते चले जाना

प्रेम में होना नहीं
तो कहो
और क्‍या है............

Thursday, January 17, 2013

सीप की तलाश में...


बहुत देर तक
पसीजी रही
हथेलि‍यां
तुम्‍हारे गर्म स्‍पर्श के
अहसास से....

थि‍रकती रही
एक बूंद
अधरों पर
लरजती रही
सीप की तलाश में...

Wednesday, January 16, 2013

शब्‍दों के जादूगर......



सुनो
रंगरेज मेरे
इससे पहले कि
ये मासूम दि‍ल
दि‍माग की गि‍रफ्त में आए
और मैं
अपनी कोमल भावनाओं को
संयम के चाबुक से
साध लूं
एक स्‍वीकारोक्‍ति जरूरी है....

सुनो
शब्‍दों के जादूगर
तुम्‍हारे आने से
अनायास ही भरने लगा
जीवन का
खालीपन
वैसे ..जैसे
कच्‍ची उम्र का प्रेम
सुध-बुध खोया
मान तज
हो गई मीरा सी दीवानी
पर
मीरा के प्रेम में
कृष्‍ण कहां हुए थे पागल.......

सुनो
मखमली आवाज के मालिक
स्‍त्री संकोच त्‍याग
कहती हूं
मुझे प्रेम है तुमसे..
ये और बात है
कि मेरी यह आवाज
तुम तक न पहुंच
व्‍योम में वि‍लीन हो जाए
और हजारों बरस बाद
कुरूक्षेत्र से आती आवाजों की तरह
मेरी आवाज भी गूंजे
कि
मेरे रंगरेज
मेरे जादूगर
बेतरह प्‍यार है तुझसे......

Tuesday, January 15, 2013

वो होती क्‍या.....

बाहर
शून्‍य पर है पारा...

मैं सि‍गड़ी जलाए
उस ताप से
सीने की बर्फ पि‍घलाना
चाहता हूं
जो
तीस बरसों से
एक अरमान के साथ
दफ़न हो गई है
जम गई है

बाहर
शून्‍य पर है पारा...

और मैं सोचता हूं
सिर्फ एक चेहरा
उस वक्‍त साथ होता
जब
नि‍गाहें ढूंढती थी उसे
तो इस जमी बर्फ की जगह
ख्‍वाहि‍शों का आईना होता
और आज
ताप के साथ कोई मीठी याद

बाहर
शून्‍य पर है पारा...

सर्द सुबह
मुंह अंधेरे
जैकेट के उपर
कुहासे की चादर तान
पगडंड़ि‍यों पर चल पड़ा
बेपरवाह
तभी उसने धीरे से
उतारकर अपनी शाल
रख दी मेरे कांधे पे
मुझे जाते देख
एक उदास मुस्‍कान के साथ

अब भी
शून्‍य पर है पारा.....

और मैं मंजि‍ल के करीब
सुरक्षि‍त
.., बेतरह ठंड में भी
सोचता हूं..
वो ख्‍वाब जो जमी है सीने में बर्फ बनकर
गर तीस बरस पहले
पि‍घल गई होती
तो उसकी दुआओं की भी
वही तासीर होती
जो उदास आंखों से
मुझे वि‍दा करती...अकेली खड़ी
मेरी जीवनसाथी की दुआओं में है
जि‍सकी बदौलत
जिंदा हूं आज

बाहर
शून्‍य पर है पारा....

मगर
आश्‍चर्यजनक रूप से
भीतर जमी बर्फ पि‍घल चुकी है
मैं उसके प्‍यार की गर्मी से
रोमांचि‍त हूं
सोचता हूं
तब भी वही होती मेरे साथ
जो आज..मेरे घर में है।



Monday, January 14, 2013

ज्‍यों झरते हों हरसिंगार...


कि‍सी की आंख से
मोती बन
झरे
तो क्‍या झरे.....
झरना है तो
झरो
इन आंखों से तुम
ऐसे
ज्‍यों झरते हों हरसिंगार...

रंग भरना
आता है तो
क्‍यों हो
कागज की तलाश
भरना है तो
भरो
इंद्रधनुष सा कि‍सी के
खाली जीवन का कैनवास....

Saturday, January 12, 2013

भ्रम टूटा है.....



कहीं कुछ भी नहीं बदला
बस एक
भ्रम टूटा है
और आंखों का कोर
तब से भीगा जा रहा है....

ये आंसू भी तुम्‍हारी तरह
दगाबाज हैं
बि‍न बुलाए आते हैं
और
न चाहने पर भी
रि‍सते रहते हैं
लुप्‍त नदी की तरह
धरा और चट़टान का
सीना चीरकर...

कुछ दि‍न
और
बस कुछ दि‍न
प्रेम न सही, भ्रम ही होता
खाली मुट़ठि‍यों में
अहसासों की छांव तो होती
यादों में
एक नाम तो होता.....

छलि‍ए
दो मुस्‍कान दि‍ए थे तुमने
अब आंचल भर
आंसू के फूल दि‍ए हैं
भुला सकूं
इतने हल्‍के नहीं उतरे थे तुम

कहो तुम्‍हीं
क्‍या करूं उन आवाजों का
जो दि‍नरात
गूंजते हैं कानों में
छलि‍या तू...दगाबाज तू...
और
मेरा प्‍यार भी तो है तू....

Friday, January 11, 2013

मुकम्‍मल....

सुनो....
अब भी मैं
थमी हूं
वहीं...उस पल में
जिस वक्‍त
तुमने कहा था
बस....
तुम रहना
हमेशा रहना
साथ
मुझे मुकम्‍मल
होने देने के लि‍ए.....

क्‍या तब तुमने
सुना था
मेरी चुप्‍पि‍यों को,
देखा था
भावनाओं को
मुखरि‍त होते
कि
मैं हूं ही इसलि‍ए
पास तुम्‍हारे
कि तुम्‍हें मुकम्‍मल कर
खुद को भी
पा सकूं........

Thursday, January 10, 2013

फख्र से सीना तान कि‍ तू शहीद सि‍पाही का बच्‍चा है....

शहीद जवान सुधाकर सिंह के चार महीने के अबोध बच्‍चे भास्‍कर के नाम, जि‍सके पि‍ता का सर काटकर दगाबाज ले गए....

तू रोता क्‍यों है बच्‍चे
क्‍या हुआ जो तेरे सर से
साया उठ गया उस पि‍ता का
जो अभी चार महीने पहले ही
तुझे पाकर खुशी से बौराया था
सर कलम कर ले गए उसका
वही
पीठ पर जो हमेशा घोंपता है छुरा....

अब देश मातम मनाएगा
वि‍रोध में कैंडल जलाएगा
अहिंसा के पुजारी हैं कहकर
शांति वार्ता के लि‍ए हाथ बढ़ाएगा
और कुछ दि‍नों में सब भूल जाएगा....

तुझे नसीब होगी धूल भरी अभावों वाली जिंदगी
फि‍र भी.....
फख्र से सीना तान कि‍ तू शहीद सि‍पाही का बच्‍चा है।

दगाबाज..चालबाज है हमारा पड़ोसी
बार-बार इसने हमें खून के आंसू रूलाया है
फि‍र भी सि‍यासत वालों ने
सब भूल कदम आगे बढ़ाया है....

न जाने कि‍तने घर उजड़े
न जाने कि‍तनी मांग सूनी हुई
सबको मालूम है
सन 47 से 2013 तक
कि‍तने हुए आघात
हमने कि‍ए शांति के प्रयास
और उस 'पाक' का विश्‍वासघात

हर संसाधन से युक्‍त हम
बस
सरहद पर अपने वीर गवांते हैं
हर शहीद के शव के आगे
सर अपना झुकाते हैं
और देशभक्‍त कहलाते हैं....

ऐ मासूम...कल न पूछेगा कोई हाल तेरा
फि‍र भी.....
फख्र से सीना तान कि‍ तू शहीद सि‍पाही का बच्‍चा है।


Wednesday, January 9, 2013

तुम्‍हारे नाम की कॉफी



कहवे की गंध
गहरी सांसों से होते हुए
जब भीतर उतरती है
और
कड़वी कॉफी का स्‍वाद
जब तक
मुंह में बना रहता है
यकीन मानों
तुम्‍हारी याद बड़ी मीठी लगती है मुझे

सुनो.....
तुम्‍हारे नाम की एक और कॉफी पी लूं.....

Monday, January 7, 2013

उफ.......ये सर्दी


उफ....ये ठंड...ये बर्फीली हवा......उतावली है यह तो अंदर आने के लि‍ए.......
एक सूराख चाहि‍ए बस इसे.....यूं चली आती है जैसे बरसों के बाद अपने पी को देख कर बावरी प्रेयसी। और अगर गलती से खोल दो खि‍ड़की या दरवाजा...आ धमकती है थानेदार की तरह शान से और हम अभि‍युक्‍त की तरह थरथराते हैं....कांपते हैं भीगे पत्‍ते की तरह.....
जाने कि‍तनी जान ले लेगी इस बरस की सर्दी....बेईमान सर्दी......
इत्‍त्‍त्‍ती भी क्‍या पड़ी है तुझे यहां आने की......अगले बरस के लि‍ए कुछ बचा के रक्‍खो न........हमें तो प्‍यारी लगती हो.....
और न सताओ अब......

Sunday, January 6, 2013

कुहासा और प्रेम




जनवरी का महीना....ऐसी ही कुहासे भरी सुबह थी वो.....हाथ भर की दूरी पर भी कुछ नजर नहीं आ रहा था...उसने अपने कान की चारों तरफ शाल को कसकर लपेटा और तेज कदमों से चल पड़ी....कालेज का पहला पीरि‍यड सुबह 7.40 से शुरू था। इस अंधेरे कुहासे से उसे घबराहट होने लगी....कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए। खुद को ही कोसा उसने। क्‍या पड़ी थी सुबह-सुबह उसे घर से निकलने की। एक दि‍न कालेज छूट ही जाता तो क्‍या आफत हो जाती। मां ने कि‍तना कहा...वल्‍लरी..आज मत जा कालेज। देख तो...कि‍तना धुंध है। लगता नहीं सूरज नि‍कलेगा। कोई नहीं आएगा कालेज में...पर नहीं, उसे तो जि‍द थी..कहा-मां..रोज ऐसा ही कुहासा रहेगा तो क्‍या मैं रोज कालेज नहीं जाउंगी। बेटी की जिद के आगे मां हारी ...चल पड़ी वल्‍लरी।
सड़क पर घना कोहरा...कोई राहगीर भी नजर नहीं आ रहा था। इक्‍के-दुक्‍के चलने वाले सभी गाड़ि‍यों के हेडलाइट़स जले हुए थे। वल्‍लरी कदम संभाल कर रखती हुई चली जा रही थी। बस...कुछ दूर और। कालेज कैंपस तक पहुंच जाए तो चैन की सांस ले। तभी..एक गाड़ी उसके ठीक बगल में आकर रूकी। एक बार तो वो चौंक गई, घबरा भी गई। जब शीशा उतरा तो ड्राइविंग सीट पर उसे रवि दि‍खा...उसकी सहेली नि‍धी का भाई। उसने लंबी सांस ली। रवि‍ ने कहा- चलि‍ए मैं आपको कालेज तक ड्राप कर दूं। इतनी ठंड में आप कब तक पैदल चलि‍एगा....न चाहते हुए भी वह गाड़ी में बैठ गई। क्‍योंकि इस अंधेरी राह पर अकेले जाने से अच्‍छा था कि‍सी पहचान वाले के साथ हो लेना।
हेडलाइट़स जल रही थी। कार के शीशे कुहासे से ढक गए थे। गाड़ी में हल्‍का म्‍यूजि‍क बज रहा था। बड़ा रोमांटिक मौसम था। रवि‍ को वह पि‍छले वर्ष से ही जानती है। फर्स्‍ट ईयर में जब नि‍धि‍ से दोस्‍ती हुई थी तो उसी ने अपने भाई से मि‍लवाया था जो उसे छोड़ने कभी-कभी कालेज आता था। एक दो बार कि‍सी की जन्‍मदि‍न की पार्टी में मि‍लना हुआ था। रवि लास्‍ट ईयर पीजी में था। बहुत अच्‍छा व्‍यक्‍ति‍त्‍व था उसका। लंबा, सांवला और आकर्षक। बातचीत भी मधुर व संयमि‍त भाषा में करता था। उसकी बातों से लगता था जैसे वो वल्‍लरी को पसंद करता है। वल्‍लरी भी उसे पसंद करती थी...पर इससे ज्‍यादा कुछ नहीं। कभी दोनों अकेले में नहीं मि‍ले थे इसलि‍ए उन्‍हें बात करने में संकोच हो रहा था। दोनों में हल्‍की-फुल्‍की बातों पर बातचीत होने लगी। वल्‍लरी को लगा कि रवि ऐसा लड़का है जिसे दोस्‍त बनाया जा सकता है। और यह बात तो रवि के मन में उसी दि‍न से थी जब वो पहली बार मि‍ले थे, शायद उससे भी ज्‍यादा।
सड़क पर इतना कुहासा था कि गाड़ी चलाना मुश्‍कि‍ल हो गया। तब रवि ने कार रोकी..यह कहकर कि आगे रास्‍ता दि‍खाई नहीं दे रहा...जरा आगे का शीशा साफ कर लूं। वल्‍लरी गुनगुनाती हुई देखती रही बाहर का नजारा। रवि वापस आ गया। थोड़ी दूर पर ही कालेज था। वल्‍लरी ने उतरने से पहले रवि का शुक्रि‍या अदा कि‍या और जैसे ही दरवाजा खोलने के लि‍ए हाथ आगे बढ़ाया.....कुहासे भरे शीशे पर उंगलि‍यों से लि‍खा था...''आई लव यू वल्‍लरी''
जब भी जनवरी महीने में कुहासा होता है...वल्‍लरी यादों में खो जाती है और रवि से जिद कर के उसके साथ लांग ड्राइव पर चली जाती है...आखि‍र इसी कोहरे की चादर ने तो उसे उसके मनमीत से मि‍लवाया था।

Saturday, January 5, 2013

इकरार तो है.....

मुद़दत बात गूंजी है
कमरे में इतनी सि‍सकि‍यां
चलो, जख्‍मों का सि‍लसि‍ला
अब तलक बरकरार तो है

इन अश्‍कों से मुझको
नहीं है कोई शि‍कवा
उल्‍फत न सही, उनका हमसे
कि‍सी बात पे तकरार तो है

बहुत सादगी से कहते हैं
आज पास हो, कल बढ़ जाएंगी दूरि‍यां
था अब तलक हमसे कोई रि‍श्‍ता
इस बात का इकरार तो है.....

Tuesday, January 1, 2013

देश का कलंक

साल का पहला दि‍न
गुजरा
कुछ मुरझाया सा

और
अब चांद नि‍कला है
पीला
कुछ कुम्‍हलाया सा

कर दि‍या है शायद
उसे भी मायूस
कुछ उदास चेहरों ने
देश पर लगा दाग
है उसके दाग से भी बड़ा
हम सा है चांद भी
अपने देश के कलंक से
कुछ शरमाया सा......