कानों में
शहनाइयों सी
शहनाइयों सी
आपकी बातें .......
और
सावन की इस रुत में
बेताब हो
मन मचल उठता है
पूछता है
आखिर क्यों हैं
वो मुझसे दूर इतने
कि रिमझिम का राग भी
सावन की इस रुत में
बेताब हो
मन मचल उठता है
पूछता है
आखिर क्यों हैं
वो मुझसे दूर इतने
कि रिमझिम का राग भी
हम मिलकर
नहीं गा सकते ....
नहीं गा सकते ....
बारिश की इन
बूंदों की तरह
क्या हम
क्या हम
धरती से मिलने
अपनी मर्जी से
अपनी मर्जी से
नहीं आ सकते---
क्यों है ये दूरियां ?
भीगी सड़क पर
भीगी सड़क पर
भीगा तन
भीगा मन लिए
हम यूं ही चलेंगे
अनवरत .......
क्या हम
कभी पास नहीं आ सकते ????
1 comment:
rashmi ji.....thoda aur gahari ho jaaye kavitaa.....tab sach men aur mazaa aa jaaye.....thodi aur sabra se likhi jaaye yah kavitaa to thodi aur gahari ho jaaye.....
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