Friday, August 5, 2011

पुकारता है तुम्‍हें

क्या करूं......
मन में उमड़ते इन अथाह बातों का
जो जुबां पर आते हैं
ही मन की अतल गहराइयों ें
खामोश रह पाते हैं.......
बेचैन हो ये दि पुकारता है तुम्हें
और हम कुछ सोए.....जागे
खुद को ही सब कह जाते हैं
जो शायद तुमको
कह पाएंगे कभी......
मगर भी
नींद आती है, लबों से आह जाती है
कोई लगाता है सपनों में गोते
और हम......तारों से
बातें करते रह जाते हैं........

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