तुम ही तुम होते हो
हर तरफ
इन दिनों---
में......वादों में
आंखों में.....सांसों में
सिर्फ आत्मिक ही होगा
.....कर लोगे उसी दिन
तुम मुझसे किनारा
हर तरफ
इन दिनों---
मेरी हंसी में
मेरे आंसुओं में
मेरे आंसुओं में
तुम्हारी ही तस्वीर
होती है
निगाहों के सामने
तन्हाई में
बस तुम्हें ही
पुकारता है ये मन
तन्हाई में
बस तुम्हें ही
पुकारता है ये मन
मगर ऐसा
कब चाहा था ही
बार-बार जब
हाथ बढ़ाया था तुमने तो
हाथ बढ़ाया था तुमने तो
तुमसे बस
यही कहा था ना
अकेली हूं.....साथ चलोगे
एक सच्चा
हमदर्द बनोगे
यही कहा था ना
अकेली हूं.....साथ चलोगे
एक सच्चा
हमदर्द बनोगे
मगर तुमने तो
मुझ पर ही अधिकार कर लिया
अब
यादों
मुझ पर ही अधिकार कर लिया
अब
यादों
में......वादों में
आंखों में.....सांसों में
बस तुम ही तुम हो
मगर मैं जानती हूं
यह हमेशा नहीं रहेग़ा
आज हमकदम बने हों
मगर जल्दी ही
अजनबी लगने लगोगे
क्योंकि
जिस दिन महसूस होगा तुम्हें
हमारा साथ
कुछ देने-पाने का नहीं
बस साथ चलते रहने का है
और हमारा मिलन हमेशा
कुछ देने-पाने का नहीं
बस साथ चलते रहने का है
और हमारा मिलन हमेशा
सिर्फ आत्मिक ही होगा
.....कर लोगे उसी दिन
तुम मुझसे किनारा
और मैं.....
जिसे अपनी दुनिया बनाए बैठी हूं
वह हमकदम ही
जिसे अपनी दुनिया बनाए बैठी हूं
वह हमकदम ही
उजाड़ देगा मेरा आशियाना
मगर मैं क्या करूं
मगर मैं क्या करूं
हमेशा मेरे आसपास
बस---
तुम ही तुम होते हो
बस---
तुम ही तुम होते हो
1 comment:
acchhi hai kavita....kisi ka naa hona aur uske hone kaa ahasas kaisa hota hai....ise bakhoob batati hui....
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