जब भी
बिखरती है
मेरे इर्द-र्गिद
अकेलेपन की गहरी धुंध
तुम किसी बहाने
तुम किसी बहाने
अपनी यादों की दस्तक दे जाते हो
और घसीट लेते हो
और घसीट लेते हो
जबरन मुझको
अपने संग-संग
अपने संग-संग
यादों की गलियों में
भटकने के लिए।
भटकने के लिए।
और मैं जो करती रहती हूं
महीनों कोशिश
तुम्हें भुलाने की
वह सारा सब
तुम्हें भुलाने की
वह सारा सब
एक झटके में ध्वस्त हो जाता है........
मेरे इर्द-र्गिद छाया
मेरे इर्द-र्गिद छाया
अकेलेपन का धुंध
थोड़ा और गहराता जाता है।
2 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन गुनाह किसे कहते हैं ? मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुन्दर रचना.
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