Wednesday, February 6, 2008

यादों की तितलियां


पता नहीं
तुम भिज्ञ हो या अनभिज्ञ
मगर ये सत्‍य है।
कोई रैना नहीं बीती ऐसी, जब तुम्‍हारी याद ने
यादों का भंवर न उठाया हो,
मगर क्षणमात्र को ही
क्‍योंकि, पश्‍चात़ इसके
बड़ी निर्ममता से दमित कर दी जाती हैं यादें
कारण
शायद तुम्‍हें ज्ञात हो...

1 comment:

अनुराग अन्वेषी said...

बधाई रश्मि बधाई। उम्मीद है लगी रहोगी और ब्लॉग को मंजिल तक पहुंचाओगी।