हम नुब्रा की ओर बढ़ रहे थे। लेह से इसकी दूरी 130 किलोमीटर है। यह समुद्रतल से 10,000फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इसे लद्दाख का बाग भी कहते हैं। हमारी बांयी ओर पहाड़ था तो सड़क के दाहिनी तरफ चौड़ी नदी। घाटी में बहती नुब्रा नदी सियाचिन ग्लेशियर से निकलती है।यह मुख्य शहर दिस्कित के पास जाकर श्योक नदी में मिल जाती है। रास्ते में पॉपलर के लहराते पेड़, भूरी पहाड़ियाँ और काले बादलों के बीच हम थके हुए चले जा रहे थे। हमें झपकी आ रही थी। अचानक बादलों की तेज गड़गड़ाहट की आवाज और बिजली की चौंध से सब चिंहुक कर जगे। हमारे ठीक 100 कदम की दूरी पर ऊपर पहाड़ पर बिजली गिरी और एक चट्टान ठीक हमारी गाड़ी के सामने आकर गिरा। शायद मिनट भर की दूरी तय की होती तो आज यहाँ आपको बताने के लिए मैं नहीं होती। हम सब डर गए थे। जीवन बचाने के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा कर आगे निकल पड़े।
अब नदी के तट पर रेत दिखने लगी। हम नुब्रा पहंचने को थे। दूर से ही दिस्कित मठ और उसके बाद बुद्ध की ऊँची प्रतिमा सबका ध्यान खींच रही थी। यहाँ मैत्री बुद्ध की 32 मीटर लंंबी मूर्ति है जो दूर से ही दिखती है। दिस्कित मठ 350 वर्ष पुराना है और सबसे बड़ा बौद्ध मठ माना जाता है।
दिस्कित गोम्पा लगभग 100 भिक्षुओं के लिए निवास स्थान है जो विश्व के विभिन्न भागों से आए हैं। अब हममें वापस उत्साह का संचार हो गया था। जल्दी से प्रतिमा के पास पहुँचना चाहते थे। वहाँ पहंचे तो बहुत पहले ही गाड़ी रोक दी गई। पता लगा कि दलाई लामा आए हुए हैं इसलिए गाड़ियाँ ऊपर नहीं जा रही। हमें पैदल दूर तक जाना होगा। मगर किसी में इतनी हिम्मत बाकी नहीं थ्ाी कि वो एक किलोमीटर भी पैदल चले। सो हमने तय किया कि पहले नुब्रा चलते हैं। वहीं पास में देखा एक स्वास्थ्य कैंप लगा हुआ था जहाँ स्थानीय निवासियों का नि:शुल्क इलाज चल रहा है। कुछ देर खड़ रहे हम। लामाओं को प्रार्थना चक्र घुमाते देखा। दलाई लामा के स्वागत की पूरी तैयारी नजर आ रही थी। लोग व्यस्त थे। वापसी के समय एक बार फिर यहाँ आएँगे, यह सोचा। वापस मुड़ते ही हरे भरे खेत और सरसों के पीले फूलों ने मन मोहा हमारा। बीच में नीले रंग की झाड़ियाँ थी, फूलों की।
नुब्रा घाटी तीन भुजाओं वाली घाटी है जो लद्दाख घाटी के उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस घाटी की ऊँचाई 10,000 फीट है। इसका प्राचीन नाम डुमरा (फूलों की घाटी) था। श्योक और नुब्रा नदी के बीच है यह घाटी। यहाँ हमें रास्ते में रेत के टिब्बे मिले ठीक राजस्थान की तरह। आगे बढ़ने पर दो कूबड़ वाले ऊँट मिलेंगे, ऐसा जिम्मी ने बताया। पूरे भारत में दो कुबड़ वाले ऊँट यहीं देखने मिलते हैं। नुबरा की दूरी लेह से 150 किलोमीटर है। सन 1947 तक नुबरा नदी होते हुए मध्य एशिया के कुछ क्षेत्रों के लिए घोड़े, खच्चर, याक व दो कूबड़ वाले ऊँटों द्वारा व्यापारिक वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था। इस वजह से आज भी मध्य एशिया में पाए जाने वाले दो कूबड़ वाले ऊँट सैकड़ों की संख्या में नुबरा के दिस्कित और हुण्दर में रेत के टीलों के बीच मिलते हैं।
मैंने गौर किया कि कोई भी गोम्पा या स्तूप आता हमारा ड्राइवर जिम्मी अपने दाहिना हाथ नाक की सीध में लाता कुछ होंठों में फुसफुसता रहता। जब कई बार देखा तो पूछा मैंने..क्या करते हो जिम्मी। बोला मन ही मन प्रणाम कर मंत्र दुहराता हूं। माना जाता है कि ये स्तूप वहाँ आसपास के रहने वालों और गुजरने वालों लोगों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। बौद्ध श्रद्धालु इनकी परिक्रमा दाएँ से बाएँ करते हैं।
क्रमश:...6
5 comments:
रश्मि जी क्या आप प्रेरणादायक य शिक्षाप्रद घटनाएँ व् कहानियां ज्ञानसागर वेबसाइट के साथ साझा कर सकती है ?? www.gyansagar999.com
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रस्किन बांड और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
बहुत बढिया पोस्ट, शुभकामनाएं। घुमक्कड़ी जिन्दाबाद। :)
जानिए क्या है बस्तर का सल्फ़ी लंदा
बहुत ही रोमांचक यात्रा रही होगी। बधाई। आप तो शुरू से ही यायावरी की शौकीन रही हैं।
चित्र बोल रहे हैं यात्रा का रोमांच ...
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