Saturday, June 9, 2018

थि‍कसे मठ - लद्दाख



पैंगोग जाते वक्‍त जि‍तना लंबा रास्‍ता लगा थाउतना लौटते में नहीं लगा। जाते वक्‍त हमलोगों को थि‍कसे मठ मि‍ला था; मगर जाने की हड़बड़ी में हमने देखा नहीं था। अब जब वापस आ रहे थे ,तो आश्चर्य था कि‍ जब हम थि‍कसे मठ के समीप पहुँचे तो सूरज अस्‍ताचल की ओर जा ही रहा थाकोई हड़बड़ी नहीं थी उसेइसलि‍ए हम भी आराम से मठ-दर्शन को चल पड़े।


 सिन्धु नदी के कि‍नारे-कि‍नारे चलते हुए आए थे। थि‍कसे मठ दूर से जि‍तना खूबसूरत हैउतना पास से भी है।मठ के अंदर जाने से पहले ही दूसरी तरफ हमारी नजर पड़ती है। चूँकि‍ मठ ऊँचाई पर है इसलि‍ए शहर दि‍खता है।  ढलती शाम की पीली परत पेड़ पौधों से लेकर घरों तक है जो और खूबसूरती प्रदान कर रही है इस दृश्‍य को। 

अंदर रंग-बि‍रंगे खूबसूरत फूल हैं। हम सीढ़ीयाँ चढ़ते हैं। सीढ़ि‍यों के साथ-साथ धर्म चक्र को घुमाते चलते हैं। वहीं लामा मि‍लते हैं। कहते हैं - जल्‍दी जाइए। एक मंदि‍र खुला है। कुछ देर में वह भी बंद हो जाएगा। पूरा परि‍सर खाली है। दीवारों पर चि‍त्र बने हुए है। अंदर जाने के रास्‍ते में अगल-बगल दो शेर वि‍राजमान है। सिंहद्वार से प्रवेश हो रहा हो जैसे। गजब की शांति‍ है चारों ओर। हम जल्‍दी से ऊपर जाते हैं। बुद्ध की भव्‍य प्रति‍मा का दर्शन होता है। महात्मा बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा  देख कर हम मंत्र-मुग्ध रह गए।
  



वापस नीचे आकर भि‍त्‍ती चि‍त्र पर नि‍गाहें डालते हैं। अद्भुत चि‍त्रकारी की गई है। यह मठ लेह के सभी मठों से आकर्षक और खूबसूरत है। स्‍थानीय भाषा में थि‍कसे का अर्थ पीला होता है। यह गोम्‍फा पीले रंग का होने के कारण थि‍कसे गोम्‍फा कहलाया। 12 हजार फीट की पहाड़ी पर बनी हुई यह गोम्‍फा ति‍ब्‍बती वास्‍तुकला का एक सुंदर उदाहरण है। यह मठ गेलुस्पा वर्ग से संबंधित है। वर्तमान में यहाँ लगभग 80 बौद्ध संन्यासी रहते हैं। अक्टूबर-नवम्बर के बीच यहाँ थिकसे उत्सव का आयोजन किया जाता है। यह मठ लेह से 25 किलोमीटर दूर है। यहाँ से सिन्धु घाटी का बहुत खूबसूरत नजारा दि‍खता है। 12 मंजि‍लों वाले इस मठ में कई भवनमंदि‍र और भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ हैं। लकड़ी की नक्काशियाँ हमारा मन मोह रही थी। सभी कक्ष बंद कि‍ए जा रहे थे। लामाओं को हमने नीचे उतरते देखा और यह सोचा भी कि‍ कि‍ती आसानी से ये लो ऊँचे-ऊँचे मठों में आराम से रहते है। हमें तो एक बार ही चढ़ना कठि‍न लग रहा है। बाहर के द्वारों पर भी बेहद आकर्षक नक्‍काशी है। पीछे साँझ का सौदर्य चरम पर है। 






हम बाहर नि‍कल आते हैं। गुम्‍फाओं के पास ठहरकर कुछ और समय गुजारने की इच्‍छा है। बेहद ठंडी हवा है जो हमारे थके जि‍स्‍म को सुकून दे रही है।  अब आज के दि‍न कुछ और करना संभव नहीं। खाना और सोना ही आज का अंति‍म लक्ष्‍य है। 



क्रमश:- 14

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