ये वक़्त है
सूखने, चटकने, टूटने और मरने का
धरती सूखी है
सूरज के प्रचंड ताप से पड़ गईं है दरारें
त्राहि मची है चारों ओर
कई रिश्ते भी टूटे इन्हीं दिनों
टूटती पत्तियों की तरह नहीं
हरी-भरी डाली गिर गई
ज़रा सी हवा ने सबकी औक़ात
उजागर कर दी
कई आइने चटके पड़े हैं
आदमी बँटा नज़र आ रहे उसमें
बड़ा शोर उठ रहा कुछ-कुछ दूरी पर
आदमियों का मेला भी है
रेला भी
पूछते हैं लोग इन दिनों अपने शहर में
चल रहा ये क्या नया खेला है
गाँवों में फिर मीनाबाज़ार लगने लगा
रिक्शे के पीछे कुत्ते दौड़ लगा रहे
आदमी बँटा नज़र आ रहे उसमें
बड़ा शोर उठ रहा कुछ-कुछ दूरी पर
आदमियों का मेला भी है
रेला भी
पूछते हैं लोग इन दिनों अपने शहर में
चल रहा ये क्या नया खेला है
गाँवों में फिर मीनाबाज़ार लगने लगा
रिक्शे के पीछे कुत्ते दौड़ लगा रहे
तड़प-तड़प कर अपने आप मर रही हैं
ग़ेतलसूत डैम की मछलियाँ
घाटी में अमन के पैरोकार और सिपाही
मारे जा रहे हैं
हरवे-हथियार से लैस हैं लोग
मुस्तैद खड़ी है पुलिस
सरकार दे रही रुपये किलो चावल
मगर भूख से मरने की ख़बर रोज़ आ रही है
ग़ेतलसूत डैम की मछलियाँ
घाटी में अमन के पैरोकार और सिपाही
मारे जा रहे हैं
हरवे-हथियार से लैस हैं लोग
मुस्तैद खड़ी है पुलिस
सरकार दे रही रुपये किलो चावल
मगर भूख से मरने की ख़बर रोज़ आ रही है
दरअसल ये दौर है
सूखने, चटकने, टूटने और मरने का
पतंग उड़ाने से ज़्यादा
काट गिराने की ताक में हैं लोग
बाबा के आँगन का अमरूद पेड़
‘बान’ मारने से सूख गया
गुलाबी कमल से भरा तालाब
अबकी बरसात में मर गया
और
जीवन के सबसे सघन-सुंदर सम्बन्धों में
लोहे की तरह जंग लग गया।
सूखने, चटकने, टूटने और मरने का
पतंग उड़ाने से ज़्यादा
काट गिराने की ताक में हैं लोग
बाबा के आँगन का अमरूद पेड़
‘बान’ मारने से सूख गया
गुलाबी कमल से भरा तालाब
अबकी बरसात में मर गया
और
जीवन के सबसे सघन-सुंदर सम्बन्धों में
लोहे की तरह जंग लग गया।
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