Thursday, June 21, 2018

ठहर पाते कुछ और दिन ..


तुम ठहर सकते थे
कुछ दिन और
जैसे पेड़ पर पकने की प्रकिया में
फल ठहर जाते हैं कुछ रोज़
किसी के तोड़ लेने 
और ख़ुद टूटकर गिर जाने के
संशय के बावजूद
अपने भीतर भरपूर मिठास समेटे
रहना चाहते हैं पकते फल
पेड़ पर मज़बूती से टिके, लुभाते
हवा के झोकों से ख़ुद को बचाते

वैसे ही
कोई भी रिश्ता
अपनी यात्रा पूर्ण कर लेता है
तो उसकी भी अंतिम गति
समाप्त होना ही है
मगर जाते-जाते रिश्ते की मिठास और
सुगंध बिखेर जाता है
तो वो सम्बंध पूर्णत्व प्राप्त करता है
ऐसे रिश्ते
कभी मरते नहीं
उसकी उम्र, उम्र से लम्बी होती है
तो कई बार
यादों के पन्नों में दर्ज इतिहास समान हो जाते हैं

वैसे ही
तुम ठहर पाते कुछ और दिन
साथी रहते, सुगंध बनते
अधपके फल की तरह अधूरा रिश्ता
अपने खट्टेपन के कारण
तिरस्कृत हो जाता है या कच्चेपन की वजह से
दूर फेंक दिया जाता है
थोड़ा सा और इंतज़ार सार्थक होता
निबाहने के लिए कई बार
तेज़ हवाओं और तूफ़ान में ख़ुद को
संभालना होता है
काश ! तुमने पेड़ों से, फलों से
कुछ सीखा होता
तुम ठहर पाते कुछ और दिन ...।

तस्‍वीर- चक्रधरपुर के रास्‍ते पर कहीं 

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