Monday, June 4, 2018

बर्फ की चोटि‍यों वाला चांगला दर्रा




आज की मंजि‍ल थी पांगोंग झील। चि‍र प्रति‍क्षि‍तहमारी ही नहींबच्‍चों की भी। नीले पानी के झील का आकर्षण हाल-फि‍लहाल के कुछ फि‍ल्‍मों ने बढ़ा दि‍या ,जि‍समें प्रमुख हैं 'थ्री इडि‍यटऔर 'जब तक है जान'। हम एक बार फि‍र सिन्धु के कि‍नारे-कि‍नारे चल पड़े बादलों से बात करते और बर्फ की चमक को आँखों में भरते। रास्‍ते में पड़ने वाले मॉनेस्‍ट्रीकाले बादल और सरसों के पीले खेतों से गुजरते हुए चल पड़े झील की ओर।


 हम अब लेह-मनाली हाईवे पर थे। पल-पल बदलता आकाश का नजारा और धुंध। पांगोग के लेह-मनाली हाईवे पर कारु से एक रास्‍ता पांगोंग के लि‍ए बाएँ मुड़ता है और सीधा रास्‍ता मनाली की ओर जाता है। कारु से चांगला करीब 40-45 कि‍मी की दूरी पर है। रास्‍ते में ऊँचे-ऊँचे भूरे पहाड़ मि‍लेंगे ,तो नीचे घाटी में हरे रंग के खेतों के बीच पीले सरसों के खेत जैसे धरती की चादर पर पैचवर्क कि‍या गया हो। पांगोंग झील जाने के लि‍ए आपको पाँच घंटे का सफर तय करना होगा। रास्‍ते की मुश्‍कि‍लें अलग है ,मौसम की मेहरबानी रही तो समय पर पहुँच सकते हैं।

चूॅँकि‍ सुबह का वक्‍त था और बादल घि‍रे थे सो रास्‍ते धुँधले मगर बहुत आकर्षक लग रहे थे। एक ट्रक से मजदूर हमारे ठीक आगे उतरे। जि‍म्‍मी न बताया कि‍ लैंड स्‍लाइडिंग के कारण सारा दि‍न मजदूरों की जरूरत पड़ती है। कारू से चांगला की दूरी लगभग चालीस-पैंतालीस कि‍लोमीटर की है मगर रास्‍ता खराब होने के कारण हमें इतने में ही दो-तीन घंटे लग गए। 



हम चांगला पहुँचने वाले थे। यह दर्रा ति‍ब्‍बत के एक छोटे से शहर तांगत्‍से को जोड़ता है। दूर से ही बर्फ ढकी चोटि‍याँ नजर आने लगीं। आर्मी के कैंप भी थे। लोग सभी उतर रहे थे। वहाँ कई छोटे-छोटे दुकान थे खाने पीने के सामान वाले। हमारे ड्राइवर जि‍म्‍मी ने चेतावनी देते हुए कहा कि‍ दस मि‍नट में यहाँ से नि‍कलने की कोशि‍श कीजि‍एगा। देर तक ठहरे तो झील देखकर लौटना मुश्‍कि‍ल होगा आज। हम उतरकर फ्रेश होने गए और कुछ खाने पीने के लि‍ए एक दुकान में घुसे। पर्यटकों की भीड़ थी वहाँ। स्‍थानीय दो महि‍लाएँ फटाफट लोगों की फरमाइशें पूरी कर रही थीं और उसके सहयोग के लि‍ए दो-तीन लोग थे। बच्‍चों ने मैगी ली और हमने थुकपा खाया। यह बड़ा स्‍वादि‍स्‍ट लगा मुझे। थुकपा मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह से बनाया जाता है। चूँकि‍ मैं शाकाहारी हूँ तो अपने मुताबि‍क चीजें तलाशती हूँ। 


जि‍म्‍मी तुरंत खड़ा हो गया कि‍ क्‍या लेंगे हम और फौरन स्‍थानीय बोली में आर्डर कराके ले भी आया। मुझे लग गया कि‍ कोई तो बात है ,वरना यह बि‍ल्‍कुल सर पर खड़ा नहीं रहता। हमने जल्‍दी से अपना नाश्‍ता खत्‍म कि‍या और बाहर आसपास देखने लगे कि‍ क्‍या है यहाँ। 
यहाँ के स्‍थानीय घुमंतू जनजाति‍यों को चांगपा कहा जाता है। मगर इस जगह को चांगला पास या चांगला दर्रा कहा जाता है। इस दर्रे में स्‍थि‍त चांग-ला बाबा के मंदि‍र के नाम पर ही इस दर्रे का नाम चांगला पास हुआ और इसकी ऊॅँचाई लि‍खी हुई थी 17688 फीट। इसे दुनि‍या का तीसरा सबसे ऊॅँचा दर्रा कहा जाता है। मगर तंग्‍लनगला दर्रे की ऊँचाई 17582 फीट है और उसे दूसरा सबसे ऊॅँचा दर्रा कहा जाता है। कई बार लैंड स्‍लाइडिंग होने से सड़क अवरुद्ध हो जाती है तो कई बार ग्‍लेशि‍यर का पानी बहने से सड़के बह जाती हैं। जो भी जो..यहाँ बहुत ठंढ़ थी। हमने कुछ तस्‍वीरें खींची और नि‍कल पड़े। हमारा सारथी पहले से गाड़ी में बैठा हमारा इंतजार कर रहा था। 



चांगला से हम आगे नि‍कले। डरबुक और मांगसे के बीच बहुत सुंदर नजारा था। चांगला पास से उतरते ही नीचे खाई में कई फौजी जीपें पलटी दि‍खाई दी। जि‍म्‍मी ने बताया कि‍ वह इसलि‍ए हड़बड़ा रहा था कि‍ आर्मी की गाड़ि‍याँ लगातार खुलनी शुरू हो जाएँगी। इसके बाद जबरदस्‍त जाम लग जाएगा तो हम वक्‍त पर पहुँच नहीं पाएँगे। चूँकि‍ हमें रात वहाँ रुकना नहीं था। कुछ दूर ही गए थे कि‍ एक नदी या झील जैसी जगह आई। जमी हुई बर्फ और बीच-बीच में पानी। बेहद खूबसूरत नजारा। कुछ लोग वहाँ उतर के पास जा रहे थे। मगर हम नहीं रूके। कुछ दूर पर सड़क के बायीं तरफ हमें एक झील दि‍खा। वहाँ बोटिंग के लि‍ए नाव भी थी। पर अफसोस..हम नहींरुक सकते थे। आगे कुछ तंबू लगे दि‍खे और याक भी बधे थे। जि‍म्‍मी ने बताया कि‍ ये लोग याक पालते हैं और दूध का व्‍यापार करते हैं।


अब हम ऐसे रास्‍ते में थे जहाँ के नजारे तो काफी खूबसूरत थे मगर वीरान था। बायीं तरफ पि‍घली बर्फ की नदी की कलकल ध्‍वनि‍ ध्‍यान खींच रही थी मगर वक्‍त की कमी के कारण उतरना मुश्‍कि‍ल था। जि‍म्‍मी ने एकदम दृठ़ता से मना कर दि‍या। नतीजा रास्‍ता बेहद ऊबाउ लगने लगा। डर से मैं भी चुप रही कि‍ कहीं शाम ढल गई तो पैंगोग का सुंदर नजारा नहीं देख पाएँगे।  हालांकि‍ मेरा मन था कि‍ एक रात पैंगेाग के कि‍नारे गुजारा जाए मगर कुछ परि‍चि‍तों ने बि‍ल्‍कुल मना कि‍या था रुकने से। कहा-रात बेहद ठंडी होती है। ऐसे में बाहर नि‍कलने का मन नहीं होगा। बेहतर है बच्‍चे हैं साथ तो न रुका जाए। तो हमलोग उसी दि‍न लौटने के हि‍साब से गए।


रास्‍ते में काले-भूरे पहाड़ और नीले आसमान पर तैरते बादल बेहद आकर्षक लग रहे थे। मगर रास्‍ता नि‍र्जन था। आगे थोड़ा खुला मैदान शुरू हुआ जि‍से चांगथंग  (उत्‍तरी मैदान) के नाम से जाना जाता है। यहाँ अचानक ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। देखि‍ए..उधर। हम झपाक के गाड़ी से उतरे; क्‍योंकि‍ वैसे भी बैठे-बैठे ऊब गए थे। मैदान में उतरकर देखा तो सड़क कि‍नारे चूहे जैसे दि‍खने वाले खरगोश के आकार के मोरमेट दि‍खे। यह एक खोह के ठीक पास में बैठा था। उसकी पीठ हमारी ओर थी। आहट सुनकर जरा भी नहीं डरा। आराम से अपने दोनों पंजों पर बैठा हुआ दूर नि‍हार रहा था जैसे योग की मुद्रा में बैठा हो। आसपास हरा घास का मैदान था और उस पर पीले फूल खि‍ले थे। अब हम और करीब गए इस डर के साथ कि‍ कहीं भाग न जाए। मोरमेट काफी चंचल होते हैं और सर्दियों में भूमि‍गत सुरंगों में शीत-नि‍द्रा में चले जाते हैं और गर्मियों में बाहर नि‍कल आते हैं। 



 
हम पास गए तो वह मुड़कर देखने लगा ,पर भागा नहीं। उसकी ओर कुछ देने के लिए जैसे ही  हाथ बढ़ाया ,तो वह अपनी दो टाँगों में उठकर खड़ा हो गया। चूँकि‍ बाहर का भोजन इन्‍हें नहीं देना चाहि‍ए ,सो हमने भी नहीं दि‍या। हालाँकि‍ बच्‍चे गाड़ी से खाने की चीज लाकर देने की जि‍द कर रहे थेपर मना कर दि‍या उन्‍हें। उसके आगे के दो बड़े दाँत बहुत आकर्षक लग रहे थे। कुछ देर हमलोग देखते रहे। पास ही मैदान में याक भी दि‍खे जो घास चर रहे थे। हमलोग थोड़ी ही देर में वहाँ से नि‍कल गए।


क्रमश:- 12 

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