Sunday, June 3, 2018

पत्‍थर साहि‍ब और मैग्‍नेटि‍क हि‍ल का जादू



यह ऐसी पहाड़ी है जि‍से मैग्‍नेटि‍क हि‍ल के नाम से जाना जाता है। यहाँ गाड़ी बंद कर छोड़ दीजि‍ए तो वह खुद ब खुद ऊपर की ओर जाने लगती है। हम भी रुके वहाँ। ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दी। गाड़ी अपने आप चलने लगी ऊपर की तरफ। सभी पर्यटक यहाँ रुककर एक बार जरूर परीक्षण करते हैं कि‍ सत्‍य क्‍या है। हमने भी कि‍या। कुछ  बाइक वाले भी टेस्‍ट कर रहे थे। हमने देखा। कुछ तस्‍वीरें लीं और पास के रेस्‍तरॉं में बैठ चाय मंगवाई। मैंने हनी-जिं‍जर वाली स्‍वादि‍ष्‍ट चाय पी। बाहर लोग एटीवी बाइक पर आसपास की पहाड़ि‍यों के चक्‍कर लगा रहे थे। हमने भी आनंद उठाया और कुछ देर बाद  वहाँ से नि‍कल लिये। 


अँधेरा हो गया था अब। आठ बज गए थे। रास्‍ते में गुरुद्वारा है 'पत्‍थर साहि‍ब'  हाँ एक शिला पर मानव आकृति उभरी हुई है कहा जाता है कि यह आकृति सिक्खों के प्रथम गुरु नानक देव जी का है। सेना इस पत्‍थर साहि‍ब गुरुद्वारे  का संचालन करती है।

हम प
हुँचते ही दर्शन करने के लि‍ए अंदर गए। बाहर बि‍ल्‍कुल भीड़ नहीं थी। हमारे अंदर जाते ही कुछ लोग आने लगे। शायद यह उस दि‍न के अंति‍म अरदास का समय था। बाबा को अंदर वाले कक्ष में भजन के साथ सुलाया गया। एक कि‍नारे चादर पर सारे शस्‍त्र रखे गए। हम सबके हाथ में एक-एक कपड़ा दि‍या गया कि‍ आप सेवा करो। हमने भी दीवारें पोंछी। उसके बाद सब लोगों ने हलवे का स्‍वादि‍ष्‍ट प्रसाद खाया और नि‍कल आए। वहाँ एक बड़े आकार के पत्‍थर की पूजा होती है। 




माना जाता है कि‍ गुरु नानक देव जी नेपालसि‍क्‍कि‍म और ति‍ब्‍बत होते हुए यारकंद के रास्‍ते लेह से यहाँ पहुँचे। सामने की पहाड़ी पर एक राक्षस रहता था जो यहाँ के लोगों को मारकर खा जाता था। गुरुजी लोगों की पुकार सुनकर इस स्‍थान पर पहुँचे और यहाँ नदी के कि‍नारे आसन लगाया। लोगों को राहत हुई मगर राक्षस गुरुदेव जी को मारने के लि‍ए मौका देखकर एक  बड़ा सा पत्थर पहाड़ी के ऊपर से उनके ऊपर गिराया। जैसे ही गुरुदेव से उस पत्‍थर का स्‍पर्श हुआपत्‍थर मोम बन गया और शरीर के पि‍छले हि‍स्‍से में धॅँस गया। मगर गुरुजी के तप में कोई असर नहीं पड़ा। राक्षस  उन्‍हें मरा जानकर पास आया; परंतु जीवि‍त पाकर गुस्‍से में अपना दाहि‍ना पैर उस पत्‍थर पर मारा। इस पर राक्षस का पैर भी उसमें धँस गया। तब राक्षस ने गुरुजी जैसे भक्‍त को मारने के प्रयास के लि‍ए उनसे क्षमा  माँगी। नानक देव ने राक्षस को इंसानों की सेवा करने का उपदेश दि‍या। राक्षस उसके बाद से सुधर गया। कुछ समय वहाँ रहकर नानक देव कश्‍मीर चले गए। बाद में उस स्थान पर पत्थर साहिब गुरुद्वारा बनाया गया। लद्दाखी उन्हें ‘लामा-गुरु नानक’ कहते हैं।




हाँ जो पत्‍थर है उसका आकार ठीक ऐसा ही हैजैसे कोई इंसान उसमें धंसा बैठा हो। हमें तो बेहद अच्‍छा लगा यह जानकार  कि‍ यह सेना द्वारा संचालि‍त होता है। पुजारी से लेकर सभी सेवादार और दरबान तक सब सेना के लोग हैं। आर्मी का मेजर मुख्‍य ग्रंथी थे। लंगर भी उन्‍हीं के देखरेख में चलता है। वहाँ दातुन साहि‍ब का भी एक गुरुद्वारा बन रहा है। कहते हैं बाबा साहब ने अपना दातुन यहीं छोड़ दि‍या था। यहाँ आसपास कोई पेड़ नहीं था। बाद में बहुत वि‍शाल वृक्ष उगा मि‍सवाक( मुलहटी) का। इसलि‍ए वहाँ के बौद्ध धर्म मानने वाले और मुस्‍लि‍म भी दातुन साहि‍ब को बहुत श्रद्धा से देखते हैं।  

कुछ देर वक्‍त गुजारने के बाद हम वापस लौट चले। रात हो गई थी। अब सीधे वापस होटल क्‍योंकि‍ अभि‍रूप होटल में ही था। थोड़ी घबराहट हुई थी उसे अकेले छोड़ा था इसलि‍ए मगर वो आराम से था। हम सबने साथ में डि‍नर लि‍या और सो गए।

क्रमश: - 11 

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