Friday, June 15, 2018

लद्दाख का आकर्षण- हेमि‍स मठ



अब हेमि‍स की ओर। कुछ दूर बाद बेहद खूबसूरत द्वार मि‍ला। रास्‍ते की बेमि‍साल खूबसूरती का जि‍क्र क्‍या करूँ। ऊँची पहाड़ी में हमारी गाड़ी चढ़ती जाती है और हम अभि‍भूत होते जाते हैं। खासकर यह सोचकर कि‍ 16वीं सदी में जब आवागमन की पर्याप्‍त सुवि‍धा भी नहीं थीतब इतने दुर्गम मठों का नि‍र्माण कि‍स तरह कराया गया होगा। हेमि‍स गोम्‍पा सि‍ंधु तट से सात कि‍लोमीटर पहाड़ि‍यों की ओट मे है। हमारे ड्राइवर जि‍म्‍मी ने बताया कि‍ वि‍देशी आक्रमणकारी ने कई मठों को लूटा, मगर पहाड़ि‍यों के ओट के कारण इस मठ पर उनकी नजर नहीं पड़ी इसलि‍ए बच गया। हमने देखा उफपर कत्‍थई रंग का पहाड़ है। इसी से सटा है गोम्‍पा। पहाड़ी की ढलान पर पोपूलस का सुंदर जंगल है।



मठ पहुँचने के पहले ही कई छोटे-छोटे लामा मि‍ले हमें। अपने हाथों में थैला उठाए, तो कुछ तालाब में नहाते मूँड़े सिर वाले लामा। बहुत अच्‍छा लगा देखकर। मठ के पास पहुँचकर पहले टि‍कट लेना पड़ा। इसके बाद हम जब अंदर आए तो वाकई आँखें हैरत से खुली रह गईं। 









लेह से करीब 45 कि‍लोमीटर की दूरी पर है हेमि‍स मठ। इसका नि‍र्माण 1630 ई में स्‍टेग्‍संग रास्‍पा नंवाग ग्‍यात्‍यो ने करवाया था।1972 में राजा सेंज नापरा ग्‍वालना ने मठ का पुर्नर्नि‍माण करवाया। मठ की स्‍थापना धर्म की शि‍क्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से की गई थी। यह मठ बाकी अन्‍य मठों से संपन्‍न और बड़ा भी है। यहां के दरवाजे की पेंटि‍ंग बहुत खूबसूरत है। जब हम पहुँचे तो बहुत भीड़ नहीं थी। पहले एक मंदि‍र में गए। वहाँ बुद्ध की एक सुंदर प्रति‍मा थी। मोहकसौम्‍य। प्रति‍मा ने नारंगी रंग का वस्‍त्र धारण कि‍या हुआ था। प्रति‍मा छोटी थी। अब हम मुख्‍य मंदि‍र की ओर चलेजो बि‍ल्‍कुल पास ही में था। 






यह मूर्ति अपेक्षाकृत बड़ी थी और परि‍धान का रंग पीला था। हाँ का मुख्‍य आकर्षण ताँबे की धातु में ढली भगवान बुद्ध की प्रति‍मा है। लामा बैठकर मंत्रोच्‍चारण कर रहे थे। बि‍ल्‍कुल शुद्ध आध्‍यात्‍मि‍क वातावरणहाँ ध्‍यान लगाने का मन करे। अभी इस मठ की देखरेख द्रुकपा संप्रदाय के लोग कि‍या करते हैं। मठ के दो मुख्‍य भाग है जिन्‍हे दुखांग और शोंगखांग कहा जाता है। यह लोग बौद्ध धर्मके महायान संप्रदाय की वज्रयान शाखा के अनुयायी माने जाते हैं। हेमि‍स में जाकर जब मन्‍त्रोचार के बीच आप दर्शन करते हैं बौद्ध मूर्ति का तो नि‍:संदेह आत्‍मि‍क शांति‍ का अनुभव करेंगे। मंत्रोचार के शब्‍द हमें नहीं पता चल रहे थे मगर इतना असरदार था स्‍वर कि‍ गूंज भीतर तक महसूस हो रही थी।





बाहर दो छोटे चबूतरे में लाल और सफेद रंग के दो झंड़े हवा में उड़ रहे थे। परि‍सर बहुत बड़ा है। इसके बाद हम तीसरे कक्ष में गए। यहाँ बौद्ध की प्रति‍मा थी मगर उ्ग्र मुखमुद्रा थी। उनके लि‍ए वि‍भि‍न्‍न खाद्य पदार्थ और फल अर्पित कि‍ए गए थे। जो अनुयायी वहां आ रहे थे उनके हाथों में भी फल थे, जि‍से वो अर्पित कर रहे थे।लकड़ी के कई खंभों पर टि‍का था छत। वहीं से लकड़ी की सीढ़ि‍याँ ऊपर तक गई। हमलोग भी छत गए खूबसूरत मठ है साथ ही पीछे की पहाड़ी से और खूबसूरती बढ़ गई। अब हम बाहर आकर भि‍त्तिचि‍त्र देखने लगे। मठ की दीवारों पर जीवन चक्र को दर्शाते कालचक्र को भी लगाया गया है। उधर दूर पहाड़ि‍यों के ऊपर भी एक बुद्ध प्रति‍मा दि‍खी। कुछ देर परि‍सर में घूमने और दो मंजि‍ला मठ के दर्शन के बाद हम संग्रहालय देखने के लि‍ए गए। हाँ एक समृद्ध संग्रहालय भी है। यह मुख्‍य मार्ग से काफी दूर पर है और बहुत ही वि‍शाल परि‍सर में है। अंदर जाते ही वि‍क्रय के लि‍ए सामान रखे थे। हमने भी कुछ सजावटी समान खरीदा और संग्रहालय देखने आगे बढ़ गए।



इस संग्रहालय में हेमि‍स मोनेस्‍ट्री का इति‍हास और पुराने राजाओं की तस्‍वीर के साथ कई महत्‍वपूर्ण जानकारी भी दी गई है। मगर तस्‍वीर लेने की इजाजत नहीं।  हाँ ति‍ब्‍बती कैलेण्‍डर के अनुसार पांचवें माह की 10 और 11वीं तारीख को बड़ा उत्‍सव 
का भी आयोजन कि‍या जाता है। यह प्रत्येक वर्ष गुरु पद्यसंभवाजिनके प्रति लोगों का मानना है कि उन्होंने स्थानीय लोगों को बचाने के लिए दुष्टों से युद्ध किया थाकी याद में मनाया जाता है। इस उत्सव की सबसे खास बात मुखौटा नृत्य है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से कई लाख लोग आते हैं। हर बारहवें वर्ष में यहां का लामा बदल जाता है। बहुत देर तक तस्‍वीरें नि‍हारते रहे। बहुत मन हो रहा था तस्‍वीरों में इन्‍हें सहेजने का। मगर इजाजत नहीं तो मुमकि‍न नहीं हो पाया।


पूरा हेमि‍स मठ घुमने के बाद हम बाहर नि‍कले। पीछे खाने-पीने के कई स्‍टॉल लगे हुए थे। हमें भूख लग आई थी। फ्राइड राइस और थुकपा खाकर नि‍कल गए।

क्रमश:- 17  

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