Wednesday, May 30, 2018

इंडस वैली - जांस्‍कर-सिन्धु संगम



शाम होने से पहले हम जांस्‍कर-सिन्धु संगम जाना चाहते थे। होटल में अभि‍रूप को छोड़ नि‍कल गए कारगि‍ल वाले रास्‍ते पर। उसी रास्‍ते एयरपोर्ट है और भी कई चीजें हैं देखने के लि‍ए। पर हमें वो संगम देखना था जो लेह से करीब 35 कि‍लोमीटर की दूरी पर है । यह नीमो गाॅँव के पास है। रास्‍ता बहुत खूबसूरतपूरा लद्दाख ही बहुत खूबसूरत है। पूरे स्‍पीड में गाड़ी भगाई जि‍म्‍मी ने। वह भी चाह रहा था कि‍ शाम ढलने से पहले हम संगम पहुँच जाएँ, क्‍योंकि‍ आते वक्‍त सड़क खराब होने के कारण हमारा बहुत सा वक्‍त बर्बाद हो गया था और  मेरे मन में सिन्धु नदीहमारी पवि‍त्र नदी देखने की जबरदस्‍त इच्‍छा थी। 



हम पहले ऊपर सड़क पर रुके। वह रास्‍ते आगे कारगि‍ल चला जाता है। ऊपर से दो नदि‍यों का संगम दि‍ख रहा था। एक बि‍ल्‍कुल मटमैली दूसरी थोड़ी साफ। बाईं ओर से आने वाली नदी सिन्धु थी और सीधे से आने वाली नदी का संगम हो रहा था यहाँ। दोनों नदि‍यों का पानी मि‍लकर दाहि‍नी ओर चला जा रहा था। दोनों तरफ काली-भूरी कई पहाड़ि‍याँ थी और सामने बर्फ लि‍पटे पहाड़। हमने चारों तरफ एक भरपूर नजर डाली और नीचे की ओर चल पड़े। गाड़ी नदी तट तक जाती है। वहाँ एक छोटा सा शेड बना थाजि‍सके कि‍नारे कुछ बोट रखे हुए थे। लोग यहाँ न जि‍सके एक दीवार पर लि‍खा था  - 'टूरि‍स्‍ट एंड वि‍जि‍टर्सवेलकम टू इंडस वैली'
  


इंडस वैली अर्थात सिन्धु घाटी की सभ्‍यता पढ़कर हम बड़े हुए हैं। सिन्धु घाटी की सभ्‍यता 3500 हजार ईसापूर्व थी। सिन्धु के तट पर ही भारतीयों के पूर्वजों ने प्राचीन सभ्‍यता और धर्म की नींव रखी थी। गंगा से पहले हि‍न्‍दू संस्‍कृति‍ मे सिन्धु और सरस्‍वती की ही महि‍मा थी। सि‍न्‍धु का अर्थ जलराशि‍ होता है। ति‍ब्‍बत के मानसरोवर के नि‍कट सि‍न-का-बि‍ब नामक जलधारा सि‍न्‍धु नदी का उद्गम स्‍थल है। इसकी लंबाई करीब 2880 कि‍लोमीटर है। यहाँ से यह नदी ति‍ब्‍बत और कश्‍मीर के बीच बहती है।

 कह सकते हैं कि‍ यह वही पुण्‍यसलि‍ला है  जि‍सकी गोद में हमारी सभ्‍यता,संस्‍कृति‍ पली-बढ़ी और जि‍सके कारण आज हम 'हि‍न्दूऔर हमारा देश  'हिन्दुस्‍तानकहलाया। सिन्धु शब्‍द से प्राचीन फारसी का हि‍न्‍दू शब्‍द बना है क्‍योंकि‍ यह नदी भारत की पश्‍चि‍मी सीमा पर बहती थी और इस सीमा के उस पार से आने वाले जाति‍यों के लि‍ए सिन्धु नदी को पार करने का अर्थ भारत में प्रवेश करना था। यूनानि‍यों ने इसी आधार पर सि‍न्धु को इंडस और भारत को इंडि‍या नाम दि‍या था।

 वि‍द्वानों का मानना है कि‍ परस्‍य (ईरान) देश के नि‍वासी सिन्धु नदी को हि‍ंदु कहते थे क्‍योंकि‍ वे स का उच्‍चारण ह करते थे। सिन्धु शब्‍द पारसी में जाकर हि‍ंदु और फि‍र 'हि‍न्‍दहो गया। सिन्धु नदी के तट पर वेद रचे गए ऋषि‍यों ने देवताओं का आह्रान कि‍या और अभी भी हर हि‍न्दू पूजा से पहले पावन नदि‍यों का स्‍मरण कर खुद को शुद्ध कर आचमन करता है। 
बाल्मीकि रामायण में सिंधु को महानदी की संज्ञा दी गयी है। महाभारत के भीष्म में सिंधु का गंगा और सरस्वती के साथ उल्लेख है-
'नदी पिबन्ति विपुलां गंगा सिंधु सरस्वतीम्।
गोदावरी नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्।।'



हम उसी पावन नदी के तट पर खड़े थे। ठंडी हवा चल रही थी। आकाश काले-सफेद बादलों से आच्‍छादि‍त था। वहाँ तट पर सीढ़ि‍याँ बनी थीजि‍ससे उतरकर हम नदी के पास गए। सबसे पहले सिन्धु का जल हाथों में लि‍या और अपने ऊपर छि‍ड़का। एक अजीब सा अहसास था। हमारे मन में बसी बातेंअनुभव और संस्‍कृति‍ इंसान के साथ-साथ चलती है। एक ओर धार्मिक महत्‍व समझ आ रहा था तो दूसरी ओर ऐति‍हासि‍क। सिन्धु सभ्‍यता और आर्यन के बारे में हर भारतीय जानता है। हम आज उसी स्‍थल पर खड़े थेहाँ हजारों सदि‍याँ पहले हमारी सभ्‍यता परि‍ष्‍कृत हुई थी। कहते हैं इसी सिंधु नदी के तट पर सिकंदर ने अपना अभियान खत्म किया था 

नदी का कि‍नारा वैसे भी बहुत मनोरम होता है। हाँ दोनों नदि‍याँ मि‍लकर भी अलग लग रही थीं क्‍योंकि‍ दोनों का रंग अलग है। यह देखना बेहद रोमांचकारी लगा।  सर्दियों में जास्‍कर नदी जम जाती है और लोग इसे पैदल चलकर पार करते हैं। मगर सिन्धु के साथ ऐसा नहीं है। 
  
ति‍ब्‍बती भाषा में तांबें को 'जंग्‍सबोला जाता है और जंस्‍कार क्षेत्र में भी तांबा मि‍लता है। अनुमान यह भी है कि‍ 'जंस्‍कारका मूल अर्थ ' श्‍वेत तांबाया'तांबे का ताराहोता है। जंस्‍कार और इसके साथ सटा हुआ लद्दाख का कुछ भाग कभी गुगे राज्‍य का हि‍स्‍सा था जो कि‍ पश्‍चि‍मी ति‍ब्‍बत तक फैला था। जांस्‍कारजम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य के कारगिल जिले में उत्‍तरी किनारे पर स्थित एक तहसील है। इस जगह मेंसाल के लगभग 8 महीने तक भंयकर बर्फबारी होती रहती है जिसके कारण यह क्षेत्र दुनिया के अन्‍य हिस्‍सों से अलग हो जाता है। मगर लेह जाने के लि‍ए सर्दियों में एकमात्र रास्‍ता जांंस्‍कर नदी ही है जो जम जाती है। अब लोग सर्दियों में यहाँ चादर ट्रैक के लि‍ए जाते हैअर्थात जमी हुई नदी की यात्रा। यह काफी लोकप्रि‍य हो रहा है। 



मगर अभी गर्मी थी और समय था रि‍वर राफ़्टिंग का। लोग दि‍खे भी नदी में दूर-दूर तक। मगर अफसोस हमारे पास उतना वक्‍त नहीं था। पहाड़ि‍यों की ओट से सूरज छुपने लगा था। हालांकि‍ यहाँ शाम बहुत देर से होती है। शाम के छह बजे हमारे शहर रांची में अंधेरा घि‍र आता है मगर यहाँ धूप नि‍खरी हुई है। हाँबादलों की लुकाछि‍पी चल रही थी जरूर। बहुत देर तक नदी कि‍नारे लहरों का बहाव देखते रहे हम लोग। यकीनन यह ऐसी जगह है जहाँ नदी कि‍नारे बैठकर इति‍हास को याद करते हुए बहुत कुछ मंथन कि‍या जा सकता है। 

आगे जाने पर अलची का वि‍श्‍वप्रसि‍द्ध मठ था। पर शाम ढलने को थी। जि‍म्‍मी ने कहा रात हो जाएगी पहुँचते हुए। हम दूसरे दि‍न चलेंगे,तो हम लोग लौटे। थोड़े ही दूर पर लेह का एक और आकर्षण स्‍थल मैग्‍नेटि‍क हि‍ल था। 


क्रमश:- 10 

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