मन की दीवार पर हैं
यादें अनगिनत
कुछ मिट चलीं, कुछ हैं अमिट
कुछ का लिखा
याद नहीं आता
कुछ इतनी गहरी कि
उन पर नहीं चढ़ती कोई और याद
बाहरी दीवार पर उकेरा
सबको नज़र आता है
मन की दीवार पर जो खुदा है
उसे किसको दिखाऊँ
कुरेद-कुरेद कर उकेर गया
जो एक बात कोई
किस तरह उसे भुलाऊँ, उसे मिटाऊँ।
4 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05.08.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2931 में दिया जाएगा
धन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
बहुत सुन्दर और सार्थक
यादें....! ना होतीं तो क्या होता !!
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