Wednesday, April 4, 2018

मन की दीवार.......


मन की दीवार पर हैं
यादें अनगिनत
कुछ मिट चलीं, कुछ हैं अमिट
कुछ का लिखा
याद नहीं आता 
कुछ इतनी गहरी कि
उन पर नहीं चढ़ती कोई और याद
बाहरी दीवार पर उकेरा
सबको नज़र आता है
मन की दीवार पर जो खुदा है
उसे किसको दिखाऊँ
कुरेद-कुरेद कर उकेर गया
जो एक बात कोई
किस तरह उसे भुलाऊँ, उसे मिटाऊँ।

4 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05.08.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2931 में दिया जाएगा

धन्यवाद

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

NITU THAKUR said...

बहुत सुन्दर और सार्थक

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

यादें....! ना होतीं तो क्या होता !!