Saturday, November 11, 2017

वही शाम है....


शाम उतर गयी पेड़ों के पीछे। मन भी धुँधलाया सा है जैसे कम रोशनी में आँखों को थोड़ी तकलीफ़ होती है स्पष्ट देखने के लिए।
मैं भी समझ नहीं पायी हूँ कुछ रिश्तों का ताना-बाना। बार-बार कुछ जुड़ता है...टूटता है। आस भी बड़ी अजीब चीज़ होती है ..ज़िद्दी...टूट के फिर जुड़ जाती है एक बार और टूटने के लिए।
वही शाम है, दिन नया पर बात वही। तोड़ दो....दिल वही है जज़्बात भी वही ।

6 comments:

कविता रावत said...

एक सा कोई दिन कहाँ रहता है
बहुत सुन्दर

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Udan Tashtari said...

अहसासों की बात!! उम्दा!

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

बहुत कुछ कह गए ये कुछ शब्द
वही शाम है, दिन नया पर बात वही। तोड़ दो....दिल वही है जज़्बात भी वही ।
वाह।।।।
सादर रश्मि जी शुभकामना।

Anamikaghatak said...

apki bate dil ko chhoo gayi....uttam

दिगम्बर नासवा said...

टूट जाने के बाद भी फिर जुड़ जाएगा ... एक सा हमेशा सब कहाँ रहता है ...
शाम भी तो नहीं रहती बदल जाती है रात में ...