कोवलम में रहते हुए ही हमें पद्मनाभस्वामी मंदिर देखकर वापस यहीं आना था। तो दोपहर बाद निकले मंदिर के लिए। कोवलम से केरल की राजधानी त्रिवेंद्रम या तिरुवनंतपुरम करीब 15-16 किलोमीटर की दूरी पर है।शहर के बिल्कुल केंद्र में स्थित है पद्मनाभ स्वामी मंदिर।
हमने इस मंदिर के बारे में बहुत पहले से सुन रखा था। खासकर जब से इस मंदिर के तहखाने में अकूत संपदा का पता चला है। उस पर दूसरी चर्चा यह भी कि यहां के ड्रेस कोड को लेकर। पुरूष केवल धोती और महिलााएं साड़ी पहनकर ही दर्शन को जा सकती हैंं। हमने बजाय किसी विवाद के उलझने के साड़ी पहनना ही उचित समझा। हां, सभी लड़कों ने वहां जाकर धोती खरीदी और पहना।
तो सबसे पहले हम जानते हैं इस शहर यानी त्रिवेंद्रम या तिरुवनंतपुरम का इतिहास। अनंतवरम तिरुअनंतपुरम का प्राचीन पौराणिक नाम है जिसका उल्लेख ब्रह्मांडपुराण और महाभारत में मिलता है। 18वीं शताब्दी में त्रावणकोर के महाराजा ने इसे अपनी राजधानी बनाई थी। कहा जाता है कि भारी मात्रा में स्वर्ण आयात होने के कारण इसे तिरुअंतमपुरम का 'स्वर्णिम द्वार' कहा जाता है। तिरुअंतमपुरम एक प्राचीन नगर है जिसका इतिहास 1000 ईसा पूर्व से शुरू होता है। इस शहर का नाम शेषनाग अनंत के नाम पर पड़ा जिनके ऊपर पद्मनाभस्वामी विश्राम करते हैं।
जब हम मंदिर के पास पहुंचे तो शाम होने वाली थी। हमलोग तो होटल से साड़ी पहनकर निकले थे मगर सभी लड़कों को कपड़े बदलने थे। सबसे पहले तो कूपन कटाकर इनलोगों ने धोती खरीदी और बदलने लगे। किसी को आदत नहीं थी धोती पहनने की। आदर्श ने तीनों बच्चोंं को पहले धोती पहनाई, फिर अभिषेक की सहायता की, तब खुद के बदले। इन सबमें काफी वक्त लग गया। मम्मी तब तक हड़बड़ाने लगी थी। उन्हें डर था कि कहींं इन सबमें मंदिर बंद न हो जाए। उन्हें बड़ा चाव था मंदिर दर्शन का।
यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर का निर्माण राजा मार्तण्ड ने करवाया था। मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी बना हुआ है जो मंदिर की खूबसूरती को और बढ़ाता है। भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाम मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9 शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है। लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था।
1733 में त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा ने इसका पुर्ननिमार्ण कराया था। मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ और केरल शैली का मिला जुला उदाहरण है। मंदिर का स्वर्ण जड़ित गोपुरम सात मंजिल का, 35 मीटर ऊंचा है। कई एकड़ में फैले मंदिर परिसर के गलियारे में पत्थरों पर अद्भुत नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर के बाहर सरोवर है जिसे पद्मनाभ तीर्थ कहते हैं।
इस बीच हम इंतजार करते-करते एक महिला से बात करने लगे। वो दक्षिण भारत की ही थी और दर्शन कर बाहर आई थी। उन्होंने बताया कि हम स्पेशल टिकट लेते हैं तो इतनी लंबी लाइन नहीं मिलेगी और जल्दी दर्शन होंगे। हमने वहीं टिकट कटा लिया। सब मंदिर की ओर तेजी से लपके। बहुत लंबी लाइन थी शाम को भी। स्त्री-पुरुषाोंको अलग लाइन लगाकर सुरक्षा जांच के बाद ही अंदर जाना था। हमलोग फिर एक साथ तेजी से आगे बढ़े। काफी लंबा गलियारा था। एक पुजारी मिले। उन्हाेंंने रास्ता बताया कि टिकट वालोंं को इधर से जाना है। वाकई हमने कम दूरी तय की बाकी लोगाों के मुकाबले। रास्ते से मिले पुजारी से हमने खजाने के बारे में पूछा। उन्होंने जवाब दिया कि कोई वहां तक नहीं जाता। बच्चे उत्साह में थे कि उन्हें खजाने का दर्शन होगा।
ये मंदिर दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में गिना जाता है। भगवान विष्णु के इस मंदिर के खजाने में एक लाख करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का पता चला है। हालांकि अभी पांच तहखानों की ही संपत्ति का आकलन हुआ है। सन 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित पांच सदस्यीय पैनल ने कुछ छह तहखानों में से पांच तहखाने को खोल दिया जो सदियों से बंद था। पद्मनाभस्वामी के खजाने में मिली वस्तुओं में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र रहा 18 फुट लंबा सोने का हार है, जो 10.5 किलो का है। करीब 536 किलो सोने के भारतीय सिक्के, 20 किलो सोने के ब्रिटिश सिक्के। सरकारी पैनल की कोशिशें के बावजूद छठा दरवाजा नहीं खोला जा सका।
माना जाता है की यहाँ बेशुमार खज़ाना छुपा हुआ है, जिसके आगे दुनिया की बड़ी से बड़ी दौलत भी तुच्छ समान है। इस मंदिर की देखभाल आज भी त्रावणकोर का राज परिवार करता है जो इस मंदिर के छठे तहखाने को खोलने की अनुमति किसी को नहीं देता। इस त्रावणकोर के राज परिवार को डर है कि अगर मंदिर के छठे तहखाने का दरवाजा खुला तो कोई अपशकुन निश्चित है।
पूजारी ने बताया कि श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर में अनंतशायी भगवान विष्णु के विशाल विग्रह के ठीक नीचे ही स्थित तहखाना नंबर 'बी'। कहा तो ये भी जाता है कि इस दरवाजे के भीतर से एक रास्ता सीधे समुद्र की तरफ जाता है।
कहा जाता है कि 136 वर्ष पहले इस दरवाजे को खोलने की कोशिश की गई थी, लेकिन बीच में ही एक अनजान डर के कारण दरवाजा खोले बगैर इसे बंद कर दिया गया था। जब छठे दरवाजे को जब खोलने की कोशिश की जा रही थी तो दरवाजे के पीछे से पानी की तेज धार जैसी आवाज आने लगी। ऐसा प्रतीत हुआ कि मानों दरवाजे के पीछे समंदर उफान मार रहा है। माना जाता है कि इस सुरंग में एक विशालकाय कई सिरों वाला नाग और नागों का झुण्ड है जो इस खज़ाने की सुरक्षा करते हैं। जो भी हो, यह एक रहस्य है जो कभी न कभी सामने आएगा ही।
अब हम दर्शन कर बाहर आ गए थे। बाहर गलियारे से निकलकर भगवान कृष्ण के दर्शन किए। पूजा की थाली जमा की तो वहां से हमें प्रसाद का पैकेट मिला। उसे लेकर बाहर गलियारे में आए। गलियारे में तराशे हुए ग्रेनाइट पत्थर के खंभे है जिस पर काफ़ी खूबसूूरत नक्काशी की गई है। वहां काफी लोग बैठे थे। हमलोग भी कुछ देर तक मंदिर के प्रांगण में बैठे रहे और भव्य प्रतिमा एवं खजाने की चर्चा करते रहे। प्यास लगी तो वहां लगे नल से पानी भी पिया। मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं। चूंकि तस्वीर खींचने की मनाही थी तो मुझे बड़ा अफसोस हो रहा था। बाहर निकलते वक्त कुछ तस्वीरें खरीदी और मंदिर को पुन: प्रणाम कर बाहर आ गए।
कहा जाता है कि 136 वर्ष पहले इस दरवाजे को खोलने की कोशिश की गई थी, लेकिन बीच में ही एक अनजान डर के कारण दरवाजा खोले बगैर इसे बंद कर दिया गया था। जब छठे दरवाजे को जब खोलने की कोशिश की जा रही थी तो दरवाजे के पीछे से पानी की तेज धार जैसी आवाज आने लगी। ऐसा प्रतीत हुआ कि मानों दरवाजे के पीछे समंदर उफान मार रहा है। माना जाता है कि इस सुरंग में एक विशालकाय कई सिरों वाला नाग और नागों का झुण्ड है जो इस खज़ाने की सुरक्षा करते हैं। जो भी हो, यह एक रहस्य है जो कभी न कभी सामने आएगा ही।
फिलहाल जब हम मंदिर के अंदर पहुंचे तो सबसे पहले दरवाजे से अंदर देखा विष्णु जी की विशालकाय मूर्ति के मुख और सर के ऊपर सर्प आकृति नजर आई। इस सर्प के पांच सर हैंं। इसके बाद दूसरे द्वार से भगवान का मध्य भाग दिखा। विष्णु की नाभि से कमल निकला था और उसे ऊपर ब्रह्मा विराजमान थे। तीसरे दरवाजे से भगवान के श्री चरण के दर्शन हुए। अनंतशैय्या पर शयन मुद्रा में विराजमान विष्णु। शास्त्रोक्त विधि से बारह हजार शालिग्राम खण्डों(काले कसौटी के प्रस्तर) को एकत्रित करके "कटुशर्करयोग" के मिश्रण से जोड़ कर भगवान पद्मनाभ का वर्तमान श्री विग्रह का निर्माण किया गया है। इन शामिग्राम को नेपाल के गंडक नदी से लाया गया है।
अब हम दर्शन कर बाहर आ गए थे। बाहर गलियारे से निकलकर भगवान कृष्ण के दर्शन किए। पूजा की थाली जमा की तो वहां से हमें प्रसाद का पैकेट मिला। उसे लेकर बाहर गलियारे में आए। गलियारे में तराशे हुए ग्रेनाइट पत्थर के खंभे है जिस पर काफ़ी खूबसूूरत नक्काशी की गई है। वहां काफी लोग बैठे थे। हमलोग भी कुछ देर तक मंदिर के प्रांगण में बैठे रहे और भव्य प्रतिमा एवं खजाने की चर्चा करते रहे। प्यास लगी तो वहां लगे नल से पानी भी पिया। मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं। चूंकि तस्वीर खींचने की मनाही थी तो मुझे बड़ा अफसोस हो रहा था। बाहर निकलते वक्त कुछ तस्वीरें खरीदी और मंदिर को पुन: प्रणाम कर बाहर आ गए।
4 comments:
सुन्दर वर्णन
अच्ची जानकारी
मंदिर के साक्षात दर्शन करा दिए इस आलेख ने ... मुझे इनके दर्शन का सौभाग्य मिला है ...
धन्यवाद
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