आधी रात को हम कोवलम तट पर थे। कोवलम का अर्थ है 'नारियल के वृक्षों का समूह'। केरल को देवताआें का देश कहा जाता है।हमलोग बेताब थे समुंंदर में जाने को, मगर रात में जाना ठीक नहीं। सो सुबह जल्दी जाने का मन बना लिए। हम लाइट हाउस बीच के पास न ठहरकर थोड़ी दूर भीड़ से परे हव्वा बीच में होटल लिए क्योंकि बहुत-भीड़भाड़ में अपना मजा खत्म हो जाता है।
सोचकर सोए थे कि जल्दी उठना है मगर पूरे दिन के सफ़र की थकान से एकदम सुबह नींद नहीं खुली। जब उठे तो बाहर दिन निकल आया था। अपनी बाल्कनी से ही देखा...विशाल समुद्र। नीले आकाश तले फैला संमदर। आकाश में कुछ छिटपुट नारंगी और कुछ काले बादल। दाहिनी ओर की चट्टानों के ऊपर नारियल के पेड़। चट्टानों की कतारें समुद्र की आेर बढ़ी हुई है। तटों पर रंगीन छतरियां तनी हुई थी और कुछ मछुआरे अपनी नाव संमदर में धकेल रहे थे।
आज से 60-70 वर्ष पहले कोवलम एक मछआरों की ही बस्ती थी। यह वही वक्त था जब हिप्पियों की गतिविधियां यहां बढ़ गई थी। हिप्पी ट्रेल के भाग के रूप में बहुत से हिप्पी कोवलम पहुंचे जो कि श्रीलंका में स्थित सीलोन तक जाने के लिए उनके रास्ते में पड़ता था। विदेशी पर्यटकों के बढ़ते आकर्षण को देख 1970 के दशक में इस बीच के आसपास विश्व स्तर की सुविधाओं को जुटाया गया। इसके साथ ही विश्व पर्यटन मानचित्र पर एक खास पहचान बनाने वाला यह देश का पहला समुद्र तट बन गया।
यह एक धनुषाकार समुद्र तट है जो तीन छोटे-छोटे तटों में बंंटा हुआ है। कोवलम के रास्ते में परशुराम का मंदिर पड़ता है जो काफी प्राचीन है। कहा जाता है कि परशुराम के फरसे की वजह से ही केरल बना जो उन्होंने एक बार क्रोधित होकर फेंका था और समुद्र पीछे हट गया तभी केरल का आकार फरसे की तरह माना जाता है। पर यह सब धार्मिक किवदंतियां हैं।
ऐसा माना जाता है कि कोवलम को पहली बार तब महत्व मिला जब ट्रावनकोर की शासक, महारानी सेतु लक्ष्मी बाई ने 1920 में किसी समय अपने लिए इस शहर में एक बीच रिसोर्ट का निर्माण करवाया था। यह बीच रिसोर्ट कोवलम में अभी भी मौजूद है और इसे हेल्सिऑन कैसल कहा जाता है। 1930 के दशक तक इस शहर ने अपने आप को यूरोपीय देशों से आने वाले पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय समुद्र तटीय स्थान के रूप में स्थापित कर लिया था।
बहरहाल जब हमने आंख खुलने के बाद समुद्र देखा तो बड़ा आकर्षक नजारा था। विशाल नीला समुद्र..नीले आकाश तले। दाहिनी ओर समुद्र में उतरती चट्टान के ऊपर हरियाली। उस पर केले और नारियल के पेड़ों को छूकर आती शीतल बयार । बांयी तरफ दूर से दिखता लाइटहाउस। दूर समुद्र में नौका ले जाल डालते मछुआरे।
अब कौन रोक सकता था भला हमें। दौड़ पड़े समुद्र की आवाज पर। सब बच्चे भी दौड़े और उतर पड़े पानी में। अभी देखा था 'डियर जिंदगी' फिल्म हम सबने। देखा, अभिरूप उसी की नकल कर समुद्र के साथ कबड्डी खेल रहे थे। आ...आ...
हम समुद्र किनारे बैठे थे। लहरों का आना-जाना देखते हुए। बच्चे समुद्र में नहा रहे थे। कोवलम का समुद्र शांत है। पूरी समुद्र की तरह डरावना नहीं। अचानक तेज शोर हुआ और बहुत सारे बिखरे लोग इकट्ठा होकर एक साथ पूरी ताकत से रस्सी खींचने लगे। वो सारे मछुआरे थे। उत्सुकतावश हम भी पास चले गए। थोड़ी देर में जाल बाहर आया तो देखा हजारों मछलियां फंसी हुई थी। मगर सब छोटी मछलियां थी। मछुआरों ने जाल समेटा और तट से थोड़ी दूर ले गए। दूर बांयी ओर की चट्टान जो लाइट हाउस बीच और हवाह बीच को अलग करती है, उस पर पूरी तन्मयता से एक बगुला बैठा था जाने कब से।
कोवलम के तीनों बीच में से लाइटहाउस बीच सबसे बड़ा माना जाता है। कुरुम्कल पहाड़ी पर 35 मीटर की ऊंचाई पर बने लाइटहाउस के कारण ही इसका नाम लाइटहाउस बीच पड़ा। यह प्रकाशस्तंभ अभी भी कार्यरत है और जहाजों को रास्ता दिखाता है। हवाह बीच का नंबर उसके बाद आता है, जिसका तट बड़ा है। हवाह नामकरण के पीछे की कहानी है कि इस बीच पर यूुरोपियन पहिलाएं टॉपलेस होकर सन बाथ लेती थीं। अब इस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। समुद्र तट पर कई यूरोपिय महिलाएं दिखीं मगर उन्होंने स्वीम सूट पहन रखा था।
बच्चे तो मस्ती कर ही रहे थे, हमने भी कम नहीं किया। समुद्र में नहाने का अपना मजा है। पीछे विराट नीला समुद्र। सफेद, फेनिल लहरें और हल्की काली रेत। यह कोवलम बीच की खासियत है कि यहीं की रेत हल्की काली होती है। जैसे-जैसे दिन चढ़ने लगा, भीड़ छंटती गई। हम भी वापस जाने लगे क्योंकि आज ही पद्मनाभम मंदिर दर्शन के लिए जाना था। बच्चे वापस कमरे में न आकर स्वीमिंग पूल की ओर चलेे गए। वहां लगभग सभी होटलों का अपना स्वीमिंग पूल होता है। देखा कुछ विदेशी वहीं सन बाथ ले रहे थे।
दोपहर लंच के बाद हमलोग मंदिर के लिए निकले। मंदिर के बारे में अलग से लिखूंगी। जब हम शाम लौटे तो तट की रंगीनी ही कुछ और थी। खूब चहल-पहल। तरह-तरह के खोमचे वाले और सैलानियों का हुजूम। जाने कहां से इतने सारे लोग चले आए थे। खूब भीड़ थी तट पर । कच्चे आम देखकर मुंह में पानी भर आया। अभिरूप ने तो दो आम खाए। हालांकि बहुत मंहगे थे आम और कच्चे होने के बावजूद खट्टे नहीं थे। हमने भुने चने भी खाए और निकल पड़े पैदल सैर को।
कुछ दूर जाने के बाद हम मार्केट वाले क्षेत्र में थे। पैदल चलने के लिए पक्की सड़क, बांयी तरफ दुकान और रेस्टोरेंट और दाहिनी ओर समुंदर। कपड़े और आभूषण के दुकान सजे थे। लगभग सारे रेस्टोरेंट में भीड़ थी। बाहर सी फूड बिक रहे थे। तरह-तरह की मछलियां। यहां विदेशियों का जमावड़ा था। लाइट हाउस बीच गुलजार था।
यहां जेम्स और ज्वेलरी की दुकानें देख कर लगा कि विदेशी काफी पसंद करते हैं और ऊंचे दाम में खरीदकर ले जाते हैं। ज्यादाातर कश्मीरियों की दुकानें थी। कुछ हैंडीक्राफ्टस, कपड़े और ज्वेलरी। साथ-साथ सी फूड की भरमार। झींगे, केकड़े, लोबस्टर। संगीत और मदिरा भी। बहुत देर तक हम घूमते रहे। दस बजे के आसपास सब दुकानें बंद होने लगी तो वापस अपने होटल आए। वहां ठीक समुद्र के किनारे कैंडल लाइट डिनर लिया। उसके बाद एक बार फिर भीगे तट पर दूर समुद्र के साथ चहलकदमी की और वापस होटल।
सुबह सनराइज की तस्वीर लेने को सोचकर सोई। एकदम सुबह नींद खुली। शायद चार के आसपास। बाहर घोर अंधेरा था। वापस सोई तो घंटे बाद उठकर फ्रेश होकर कैमरा ले सीधे बाहर.. मैं और आदर्श। बाकी लोग सो रहे थे। बाहर बत्तियां जल रही थी। पूरब की ओर से हल्की लालिमा उभरने लगी। दूर लाइटहाउस की बत्तियां भी जल रही थी।
जब हम समुद्र के साथ-साथ चलने लगे तो कोई नहीं जागा था। हमलोग चलते-चलते तट के दूसरी छोर तक चले गए। चट्टान से टकराती लहरें बहुत सुंदर लग रही थी। सुबह पानी ठंढ़ा था। कुछ देर में उसी कोने में 15-20 विदेशी युवतियों का समूह आया और सबने आसन बिछाकर योग करना शुरू किया। अच्छा लगा देखकर कि भारतीय योग अब पूरे विश्व में मान्य है।
हम धीरे-धीरे चलते हुए लाइटहाउस बीच की तरफ आने लगे। दूर समुद्र में एक नाव नजर आया। मगर सूरज लापता था। हल्का कुहरा जैसा। मछुवारे समुद्र में नाव उतार रहे थे। मेरे देखते ही देखते काफी दूर चली गई नाव।
अब तक लगभग सारे लोग जाग चुके थे और समुद्र में भीड़ बढ़ने लगी थी। अभिरूप भी पानी में खेलने लगा। कुछ देर के बाद हमलोग वापस गए होटल। आज केरल की प्रसिद्ध मालिश का आनंद भी लेना था। होटल में सुविधा थी। इसके बाद फिर एक बार मैं दौड़ी समुद्र में। अब जी भरकर नहाये। अभिरूप के साथ खूब मस्ती की। हमें निकलना था अब कोवलम से वापस।
अलविदा कोवलम...अलविदा अरब सागर..याद रहोगे तुम।
1 comment:
वाह ! आपके साथ हमने भी कोवलम की सैर कर ली । सुन्दर चित्रों के साथ शानदार विवरण ।
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