Wednesday, November 9, 2016

अभि‍रूप उवाच....हाय पैसा


भई ...सबसे ज्‍यादा परेशान तो मेरे छुटकू अभि‍रूप जी हैं कल से....जैसे टीवी पर न्‍यूज आई....रट लगा दी कि‍ क्‍या हुआ...कैसे होगा...क्‍या सारे हजार-पांच सौ के नोट बर्बाद हो गए।
हमारी बातचीत एक तरफ..इतना शोर मचाया कि‍ पहले उन्‍हें सारी बात समझानी पड़ी। समझकर दौडे़ गए अपने कमरे में और अपने मनीबाक्‍स से पूरे 7500 नि‍काल लाए और थमा दि‍या हाथ में। बोले......
अभी के अभी बदल के सौ-सौ के नोट दो। रख मत लेना...ये मेरे पैसे हैं।।
अभी-अभी उनका बर्थडे गुजरा है..और उसमे मि‍ले लि‍फ़ाफों पर कब्‍जा जमा लि‍या था जनाब ने। छूने भी नहीं दि‍या हमें।
देखि‍ए जमाख़ोरी का नतीजा...बेचारा बच्‍चा भी परेशान हो गया।

2 comments:

kuldeep thakur said...

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 10/11/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2522 में दिया जाएगा
धन्यवाद