अब धनतेरस के अगले दिन छोटी दीवाली। घर की साफ सफाई की समाप्ति और मां की रसोई में पकवान की तैयारी शुरू। मां नारियल के लड्डू बहुत स्वादिष्ट बनाती हैं। फिर पारंपरिक भोजन की तैयारी। अगले दिन धुसका, आलू की सब्जी, पुलाव, गोभी की मसालेदार सब्जी बनती। मिठाईयां कुछ घर में बनती, कुछ बाजार से आती।
आज छोटी दीवाली के दिन थोड़े दिये जलते थे। मंदिर में, तुलसी चौरे के नीचे, कुंए और गौशाला में। छत पर चारों दिशाओं में और कुछ बाहर..कुछ खिड़कियों कुछ छज्जे पर। उस दिश हम सिर्फ रौशनी जलाते। शोर वाले पटाखेे बिल्कुल नहीं। आज पापा छत पर निकले राॅड के ऊपर कंदील लगाते। मैं पूरे वक्त उनके सहयोग के लिए खड़ी रहती। बहुत अच्छा लगता था अंधेरे आकाश में कंदील को जलता देखना। एक दीपशिखा जलती हो आंखों के आगे।
रात हमारे लिए विशेष खास होता। शाम के वक्त ही दादी एक पुराना दीया ढूंढकर रख लेती। जब सारे लोग सोने चले जाते तब दादी हाथ में वही दीया, जिसमें सरसों का तेल भरा रहता, और जलता रहता, लेकर आती और हम बच्चों के तलवे में तेल लगाती। सर पर आरती देकर कमरे में दिया घुमाती। ऐसा वो पूरे घर में करती और होठों ही होंठो कुछ बुदबुदाती रहती। सब सोये होते उस वक्त। मैं आंखें मूंद सोने का बहाना करती। दादी पूरे घर में दीया घुमाकर घर के बाहर निकलती और दूर मैदान में रख आती। वो दिया मेरे कमरे की खिड़की से दिखता। मैं लाइट आॅफ कर दिया रखने जाती दादी को देखती, और तब तक देखती रहती जब तक दीया बुझ नहीं जाता। गहन अंधकार में एक दिया बड़े से मैदान के बीच बेहद आकर्षक लगता। मुझे तब समझ नहीं आता था कि दादी देर रात क्यों रखती है दीया। बड़ा रहस्यमयी होता था सब। पर बहुत अच्छा लगता था।
1 comment:
ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सभी को छोटी दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं|
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "छोटी दिवाली पर देश की मातृ शक्ति को बड़ा नमन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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