कैंप के बाहर सड़क के दूसरी ओर पसरा हुआ रेगिस्तान |
अब चले कैंप की तरफ। पास आए तो देखा सामने ही सड़क पार रेगिस्तान है और वहां पर्यटकों की बेहद से ज्यादा भीड़ है। कई ऊंट वाले लगाम हाथ में थामे घूम रहे हैं। कोई साफा बांधे, कोई अंगरखा पहने ज्यादातर लोग मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते थे ,जिनके कुछ परिवार सरहद के पार भी रहते हैं । कुछ लोग ऊंट पर सवारी का आनंद ले रहे तो कुछ ऐसे ही बैठे हैं। पर उधर रेत में जाने से पहले हमें कैंप में जाना था।
हमने कैंप में एंट्री की। एक बार तो लोगों की कतार देख डर लगा कि इतने लोग कहां से और कैसे आएंगे। पर अंदर जाने पर पता लगा कि कॉलेज स्टूडेंट का कोई ग्रुप आया है मुंबई से , इसलिए इतनी भीड़ है। वैसे भी हमारी बुकिंग पहले से थी। हमने तुरंत अपना सामान टेंट में रखा और बाहर भागे। क्योंकि शाम होने वाली थी और मुझे यहां की आवभगत से ज्यादा बाहर की दुनियां खींच रही थी।
कैंप वालों ने अपनी तरफ से ऊंट की सवारी का इंतजाम रखा था। वो लोग हमें घुमाने का इंतजार ही कर रहे थे। बाहर छोटी-छोटी चाय और मैगी की गुमटियां लगी हुई थी। लोग बैठे थे। मैंने देखा है कि ऐसी गुमटियां भी पर्यटन स्थलों पर खूब चलती हैं। दिन भर से हमने कुछ खाया नहीं था तो बच्चों ने मैगी की जिद की। हमने में साथ में खाया और चाय पीने के बाद कैमल सवारी को चल दिए।
बैठने में एक बार डर लगा, पर चूंकि हम पहले भी ऊंट की सवारी का आनंद ले चुके थे, इसलिए हिम्मत के साथ चल दिए। एक ऊंट पर हमदोनों, दूसरे में दोनों बच्चे। शाम ढलने में जरा वक्त था। हमें ऊंट वाले ने थोड़ी दूर का चक्कर लगाया फिर बहाना बनाया कि अब देर हो गई है। कल सुबह दूर तक ले जाऊंगा। हम समझ गए कि उन्हें अलग से अपनी कमाई करनी है। पर हममें से किसी को ऊंट पर बैठने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। सो हम वापस आए और पैदल चल दिए ऐसी जगह की तलाश में जहां से रेत और डूबते सूरज को कैमरे में एक साथ कैप्चर किया जा सके।
काफी भीड़ थी। हम पैदल जरा दूर चलते हुए एक ऊंचे टिब्बे पर जा बैठे। दिन सामन्य गरम था मगर जैसे-जैसे शाम ढलने लगी, रेत का स्पर्श शीतल लगने लगा। ठंढ बढ़ने लगी थी। हमें जैकेट पहनना पड़ा। दूर शाम ढल रही थी। साल का अंतिम सूरज अस्तचल की ओर था। लालिमा लिए सूरज काफी नजदीक नजर आ रहा था। रेत के दरिया के ऊपर लाल होता सूरज । ऊंटों का काफिला एक कतार में लौट रहा था। कुछ युवा लड़के-लड़कियां हाथ बांध डांस करने लगे। कालिमा घिरने लगी। गुलजार सम अब वीरान होने लगा।
धीरे-धीरे भीड़ छटने लगी। लोग वापस जाने लगे। लगा कि बहुत सारे लोग 31 दिसंबर की शाम सेलिब्रेट करने यहां आए थे। पर हम जमे रहे। ठंढी रेत पर। बातें करते, कुछ गुनगुनाते। बच्चे हमारे जूतों को रेत के नीचे दबा कर अपना मनोरंजन करने लगे। शाम ढलने लगी। उसी हिसाब से ठंढ बढ़ने लगी। मैं चांद के निकलने का इंतजार करती रही। मुझे लगता था कि चांदनी रात में रत की खूबसूरती और बढ़ जाती है। पर चांद देर शाम तक नहीं निकला।
अब हमने अपने कैंप की तरफ देखा। रौशनी थी चारों तरफ। आरकेस्ट्रा की आवाज आ रही थी। जितने भी कैंप थे सबमें कुछ न कुछ आयोजन था। हम भी उठकर चल दिए। चाय की तलब हो रही थी। पूरा सम जैसे जगमगा रहा था।
कैंप के बाहर का दृश्य |
अब हमने अपने कैंप की तरफ देखा। रौशनी थी चारों तरफ। आरकेस्ट्रा की आवाज आ रही थी। जितने भी कैंप थे सबमें कुछ न कुछ आयोजन था। हम भी उठकर चल दिए। चाय की तलब हो रही थी। पूरा सम जैसे जगमगा रहा था।
अंदर जाने पर देखा खुले में गीत-संगीत का इंतजाम है। एक मंच लगा है और उसमें फोक गीत गा रहे कलाकार। नाश्ते का अच्छा इंतजाम था। कई तरह की चीजें थी। पर हमने चाय के साथ पकौड़ा और चिली लिया। फिर गरमागरम जलेबी का भी मजा लिया। एक बड़े से कडाहे पर दूध खौलाया जा रहा था। केसर वाला दूध। उसकी भी खूब मांग थी। हमने वहीं खड़े होकर गीत सुनते हुए खाया और अपने टेंट की ओर गए। अब हमने अंदर जाकर टेंट की सुविधाएं देखीं। एक डबल बेड, साथ ही एक सिंगल बेड, अंदर परदे की दीवार कर के लैट-बाथ, बेसिन। कमरे में एक छोटा टेबल और सामान रखने को बड़ा टेबल।
कैंप के अंदर बेड पर आराम करता बड़ा बेटा अमित्युश |
कुल मिलाकर अच्छा अरेजमेंट था मगर इसके लिए जितने पैसे लिए गए, उस हिसाब से नहीं था। बाद में पता लगा कि नेट बुकिंग का ज्यादा ही वसूलते हैं लोग। वहां जाकर लेने पर कम में मिल जाता। पर चूंकि 31 की रात थी इसलिए हम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे।
थोड़ा फ्रेश होकर हमलोग वापस बाहर गए। सामने मंच बना हुआ था। वहां प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्य, घूमर
चरी नृत्य ( सर पर घड़ा रख कर नाचना ) गणगौर नृत्य, तेरह ताली आदि नृ त्य दिखा रही थी कलाकार। मंच के दोनों तरफ बैठने की व्यवस्था थी। उपर कुर्सियां और नीचे गाव तकिया लगाकर बैठकर या अधलेटे होकर देखने का इंतजाम था। नीचे की पंक्ति लगभग भर गई थी। बहुत सारे कालेज के छात्र-छात्रा आए थे। हम कुर्सी पर बैठे और नृत्य का आनंद लेने लगे। बीच में अलाव की व्यवस्था थी। कुछ लोग वहां भी आग के समीप बैठे थे।
इसी बीच डिनर का वक्त हो गया। बढ़िया अरेंजमेंट था।हमने खूब अच्छे से खाना खाया। फिर वापस उसी जगह जहां गीतों की बहार थी। जब फाेक गीत-नृत्य समाप्त हुआ तो फिल्मी गानों पर डांस शुरू हुआ। लगा जैसे खास इस रात के लिए इन्हें बुलाया गया है। अब तो युवाओं की मस्ती देखने लायक थी। ऊपर मंच पर लड़की का डांस और नीचे छात्रों का। इन्हीं सब में वक्त गुजर गया। घड़ी के कांटे 12 पर रूके और हैप्पी न्यू इयर की आवाज से पूरा कैंप गूंज उठा। केक काटा गया। और जो लोग अब तक दर्शक थे वो भी डांस करने लगे। बेशक..अब हम भी इसमें शामिल थे। एक अविस्मरणीय रात के साक्षी रहे हम।नृत्य करती लड़की |
थोड़ी देर तक डांस चलता रहा। फिर हमलोग उठकर अंदर आ गए। सारे दिन की थकान थी। मगर बाहर के शोर से सो नहीं पाए। लगभग सुबह को नींद आई जब शोर-शराबा थमा। हमने तय किया था कि सुबह जल्दी उठकर सैर के लिए जाएंगे। मेरी नींद खुली तो सुबह से 6 बजे थे। लगा, अब तक सूरज निकल चुका होगा। हड़बड़ाकर बाहर गए तो देखा घुप अंधेरा। यकीन नहीं हुआ। इस वक्त जाने का कोई मतलब नहीं था सो हम वापस सो गए।
घंटे भर बाद जब उठकर बाहर गए तो ऊंट वाले जिद करने लगे कि घुमा लाएंगे। हमारा मन नहीं था। तभी एक ऊंट गाड़ी वाले ने कहा कि वो जल्दी ऊपर तक ले जाएगा। लग रहा था कि सूरज निकल आया है, इधर से पता नहीं चल रहा। हम दौड़कर ऊंट गाड़ी पर बैठे। मैंने कैमरा थामा और फोटो खींचती गई। ऊपर वाकई सूरज तेजी से चढ़ रहा था। मैंने जल्दी से कुछ खूबसूरत शॉट्स लिए। रेत के टीलों से ऊपर आता सूरज आैर सामने ऊंट, बिल्कुल पोस्टरों जैसा दृश्य था। हमें चारों तरफ कौअे दिखे। शायद पर्यटकों द्वारा छोड़ी गई खाद्य सामग्री के कारण कौअे झुंड के झुंड जमा थे।
घंटे भर बाद जब उठकर बाहर गए तो ऊंट वाले जिद करने लगे कि घुमा लाएंगे। हमारा मन नहीं था। तभी एक ऊंट गाड़ी वाले ने कहा कि वो जल्दी ऊपर तक ले जाएगा। लग रहा था कि सूरज निकल आया है, इधर से पता नहीं चल रहा। हम दौड़कर ऊंट गाड़ी पर बैठे। मैंने कैमरा थामा और फोटो खींचती गई। ऊपर वाकई सूरज तेजी से चढ़ रहा था। मैंने जल्दी से कुछ खूबसूरत शॉट्स लिए। रेत के टीलों से ऊपर आता सूरज आैर सामने ऊंट, बिल्कुल पोस्टरों जैसा दृश्य था। हमें चारों तरफ कौअे दिखे। शायद पर्यटकों द्वारा छोड़ी गई खाद्य सामग्री के कारण कौअे झुंड के झुंड जमा थे।
एक खूबसूरत सुबह..रेगिस्तान की |
अब हम वही पर उतर गए और पैदल आगे गए। कई छोटे-छोटे झाड़ मिले। अभी रेत के धोरे साफ थे। शाम तो पैरों के इतने निशान बने हुए थे कि सारी खूबसूरती समाप्त हो गई। बड़ा सुंदर समा था। पेड़ों के पास छोटे-छोटे बिल थे, और बाहर पंजों के निशान। जैसे कि कोई सांप का घर हो या गुबरैला चला हो जमीं पर।
कच्ची धूप हमें अच्छी लग रही थी। वहां एक चाय वाला आया। हमने चाय पी। पूछा ऐसे तो कचरा होता होगा। चाय वाले ने बताया कि हर शाम यहां सफाई होती है। अच्छा लगा। वरना इतने प्लास्टिक के गिलास और बोतल पड़े होते कि रेगिस्तान की सारी खूबसूरती ही समाप्त हो जाती।
कच्ची धूप हमें अच्छी लग रही थी। वहां एक चाय वाला आया। हमने चाय पी। पूछा ऐसे तो कचरा होता होगा। चाय वाले ने बताया कि हर शाम यहां सफाई होती है। अच्छा लगा। वरना इतने प्लास्टिक के गिलास और बोतल पड़े होते कि रेगिस्तान की सारी खूबसूरती ही समाप्त हो जाती।
कुछ देर तक हम वहीं रूके। जी भर कर रेगिस्तान को निहारा क्योकि अब हमें जाना था वापस। बस एक दिन ही रहना था हमें यहां। रेत के धोरों को आंखों में बसा लेना चाहते थे हम। डूबते सूरज और उगते सूरज में रेत का बदलता रंग देख लिया था हमने। सोनल रेत हमारे तन को छूकर मन में बस गई थी।
लौटकर हम नहाए और फटाफट सामान पैक किया। बहुत खारा पानी था वहां का। हमें पता था कि पानी की बहुत दिक्कत होती है इन जगहों पर। बहुत जतन करने होते हैं। इसलिए पानी कम से कम खर्च हो इसका ध्यान रखा।
लौटकर हम नहाए और फटाफट सामान पैक किया। बहुत खारा पानी था वहां का। हमें पता था कि पानी की बहुत दिक्कत होती है इन जगहों पर। बहुत जतन करने होते हैं। इसलिए पानी कम से कम खर्च हो इसका ध्यान रखा।
खुशनुमा पल.. |
अब हमने सुबह का ब्रेकफास्ट लिया, जो उसी डायनिंग हॉल में था जहां रात को डिनर की व्यवस्था थी। कई तरह के व्यंजन थे। सबने अपनी पसंद का ब्रेकफास्ट लिया और चल पड़े आगे सफर को। थोड़ी दूर ही गए थे कि छोटे बेटे ने जिद की कि वह फिर से जीप सफारी करेगा। मगर इतना वक्त नहीं था। तो हमारे कैब वाले ने हमें रेत के समंदर के पास लाकर छोड़ा। कहा कुछ देर रह लो। हमें देखकर कुछ बच्चे आ गए जो अपने अपने ऊंट की रास थामे थे। उनके कहने पर हमने थोड़ी दूर की कैमल सफारी की। रेगिस्तान के जहाज पर से उतरकर हम सीधे निकल पड़े जोधपुर की ओर..। जैसलमेर का सफर समाप्त।
अब हम भी लौट चले नए सफर को.. |
2 comments:
सुन्दर वर्णन और आकर्षक फोटो
Thank you
Post a Comment