दो दिन पहले हम दोस्तों ने खूब बातें की थी मुंशी जी और उनकी चाय के साथ हमारे बीते दिनों की... आज पता लगा, अब नहीं रहे वो....
तब बीए की परीक्षा देकर हमने पत्रकारिता का इंट्रेस इक्जाम पास किया था। जिस दिन परीक्षा थी, उस दिन हम दो सहेलियों ने पहली बार चाय पी थी मुंशी जी की बनाई हुई। हम परीक्षा देकर बाहर निकले और उन्हीं की दुकान पर ठहरे। एक छोटी सी झोपड़ीनुमा दुकान।
जब दाखिला हुआ 'बैचलर आॅफ जर्नलिज्म' मे, बड़ा उत्साह था पत्रकारिता की पढ़ाई का । हमारी कक्षाएं सुबह के 7:40 से शुरू होती थीं। अक्टूबर का महीना, गुलाबी ठंढ। मैं सबसे अंजान थी, क्योंकि मेरी सहेली ने इंट्रेस टेस्ट पास नहीं किया था और सारे छात्र अलग कॉलेज, अलग विषय और अलग-अलग जगहों से आए थे। जो पहले से परिचित थे, उनके लिए तो कुछ नहीं, पर मैं बिल्कुल अजनबी थी सबसे। सबसे पहले लड़िकयों से दोस्ती हुई, जो मेरे साथ बैठती थीं। दो क्लास के बाद 15 मिनट का ब्रेक मिलता था, तो हम सब सर्दी दूर करने के लिए नीचे धूप में जाते। इसके लिए सबसे मुफी़द जगह थी मुंशी जी की चाय की दुकान।सबसे परिचय होने और दोस्त बनाने की प्रकिया यही से शुरू हुई क्योंकि जो स्टूडेंट पहले से चाय लेने जाते, वो तुरंत बाद आए लोगों से भी पूछते, कि चाय पीना है क्या। क्योंकि मुंशी बाबा उसी हिसाब से चाय बनाते। हमलोगों को पहले से बनी हुई चाय का स्वाद नहीं भाता था।
पत्रकारिता विभाग के ठीक सामने , रांची विवि के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग से सटा हुआ एक छोटा सा खपरैल होटल हुआ करता था। बाहर लकड़ी की कई बेंच लगी रहती थी धूप में। हम सब उनकी दुकान में घुसते और बाबा चाय देना कहकर बाहर बेंच पर धूप में बैठ जाते। अक्सर चाय के साथ समोसे भी लेते, क्योंकि सुबह की क्लास में ज्यादातर लोग कुछ खाकर नहीं आते थे। हममें से कुछ ऐसे भी छात्र थे जो पत्रकारिता की कक्षा के बाद स्नातकोत्तर यानी बीजे की क्लास खत्म होते ही एमए की क्लास के लिए भागते थे। उनमें से मैं भी एक थी। इसलिए वो ब्रेक हमारे लिए काफी जरूरी हुआ करता था, पेट भरने और ताजगी महसूस करने के लिए।
तो मैं बता रही थी कि शुरू के दिनों में हमारी दोस्ती बढ़ाने के पीछे भी मुंशी जी के चाय का बड़ा योगदान था। वहां अक्सर दो या तीन का ग्रुप जाता और वापस आते वक्त हमारी संख्या 10 से कम नहीं होती। मुंशी जी हमें गरमागरम चाय देते और साथ में समोसे भी। शांत मिजाज मुंशी जी के खपरैल होटल के बाहर न जाने कितने छात्रों का जमावड़ा लगा रहता। हालांकि मुंशी जी का असली नाम नंदलाल प्रसाद था, मगर कुछ लोग ही होंगे जो उनके असली नाम से जानते होंगे।
बाद के दिनों में जब हम दोस्तों में जब भी बात होती, एक बार पुरानी यादों की गलियों में चक्कर काटते हम और मुंशी जी की चाय जरूर याद करते। मैं एक बार गई थी विभाग, तो वहां रूककर चाय पी थी। मुंशी जी हंसते हुए पूछा था...;का हाल बा....हमने भी पूछा आप कैसे हैं। उनकी दुकान तब भी गुलजार थी। नए छात्र-छात्राएं वहां बैठे हुए थे। माहौल अजनबी मगर यादें तो अपनी थी।
हालांकि पत्रकारिता की कक्षा के बाद भी हमारा जाना लगा रहा क्योंकि इतिहास विभाग भी बगल में था, जहां शाम तक कक्षाएं चलती थीं। पूरे दिन में एक न एक बार हम सब चाय पीने जाते ही थे। अब भी मैं भी जब विवि की तरफ से होकर निकलती, ठहरकर एक नजर जरूर डालती।
अभी दो दिन पहले 13 मार्च को हम सभी पत्रकारिता के दोस्त मिले। दो दशक से ज्यादा हुए हमारी पढ़ाई को। मुंशी जी का जिक्र उस दिन भी छिड़ा। तब हमें पता नहीं था कि अब वो नहीं रहे। 1 मार्च को उनका निधन हो गया। तमाम उम्र उन्होंने काम किया और न जाने कितने लोगों को चाय पिलाया। इस रांची विवि के छात्र उन्हें कभी नहीं भूल पाएंगे। भले ही आज लोग अलग शहरों में, ऊंचे पदों पर बैठे हैं, मगर मुंशी जी की चाय का स्वाद उन्हें हमेशा याद रहेगा।
हम सब छात्र-छात्राओं की तरफ से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
तस्वीर- साभार गूगल
हालांकि पत्रकारिता की कक्षा के बाद भी हमारा जाना लगा रहा क्योंकि इतिहास विभाग भी बगल में था, जहां शाम तक कक्षाएं चलती थीं। पूरे दिन में एक न एक बार हम सब चाय पीने जाते ही थे। अब भी मैं भी जब विवि की तरफ से होकर निकलती, ठहरकर एक नजर जरूर डालती।
अभी दो दिन पहले 13 मार्च को हम सभी पत्रकारिता के दोस्त मिले। दो दशक से ज्यादा हुए हमारी पढ़ाई को। मुंशी जी का जिक्र उस दिन भी छिड़ा। तब हमें पता नहीं था कि अब वो नहीं रहे। 1 मार्च को उनका निधन हो गया। तमाम उम्र उन्होंने काम किया और न जाने कितने लोगों को चाय पिलाया। इस रांची विवि के छात्र उन्हें कभी नहीं भूल पाएंगे। भले ही आज लोग अलग शहरों में, ऊंचे पदों पर बैठे हैं, मगर मुंशी जी की चाय का स्वाद उन्हें हमेशा याद रहेगा।
हम सब छात्र-छात्राओं की तरफ से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
तस्वीर- साभार गूगल
2 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुखों की परछाई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
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