तुम बिन....
रात
पूरे आकाश में
अकेला था चांद
जैसे
पूरी का़यनात में
मैं
तुम बिन.....
मन पसीजता है
देखूं
कि फिर आवाज दूं
प्यार से सहलाऊं
कि भुला दूं
मन पागल है
कभी नहीं टिकता
अपनी बात पर
उलझ जाता है
फिर से
उसी मकड़जाल में
जिसे
बामुश्किल तोड़
बाहर आया था एक दिन....
3 comments:
ये मन बावरा और ये चाँद सांवरा ...........
सुन्दर रचना ..जारी राहिए जी
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उम्दा रचना
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