तुम जानते हो
जब भी
यूं बीच रास्ते छोड़
आगे बढ़ जाओगे
आंखों में सावन भरकर
मैं प्यासी धरती सी
वहीं पड़ी रहूंगी, बूंदों के इंतजार में
सूखती है अवनि, फटता है उसका सीना
मगर
तृप्ति मिलती है उन्हीं बादलों से
जो बार-बार रूठकर, तरसाकर
चले जाते हैं
बहुत इंतजार के बाद, फिर लौटने को
1 comment:
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
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