एक वक्त था
जब तुम्हें सुना
कुछ और नहीं सुना
खुद को
इतना अकेला किया
कि
तुम बोलो, कोई और न बोले
तुम्हारे
होंठो की फुसफुसाहट भी
मुझ तक स्पष्ट आए
जानती हूं
शाश्वत कुछ भी नहीं
मैं अकेली और अकेली
होती चली गई
अब वो अतीत है
जहां तुम वहां हम
या यूं भी कभी-कभी
जहां मैं वहां तुम
अब हम
घड़ी के कांटे हैं
मिलते ही हैं पल को
बिछ़ड़ने के लिए।
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