Friday, July 31, 2015

मि‍लते ही हैं बि‍छ़ड़ने के लि‍ए


एक वक्‍त था
जब तुम्‍हें सुना
कुछ और नहीं सुना
खुद को
इतना अकेला कि‍या
कि‍
तुम बोलो, कोई और न बोले
तुम्‍हारे
होंठो की फुसफुसाहट भी
मुझ तक स्‍पष्‍ट आए
जानती हूं
शाश्‍वत कुछ भी नहीं
मैं अकेली और अकेली
होती चली गई
अब वो अतीत है
जहां तुम वहां हम
या यूं भी कभी-कभी
जहां मैं वहां तुम
अब हम
घड़ी के कांटे हैं
मि‍लते ही हैं पल को
बि‍छ़ड़ने के लि‍ए। 

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