Thursday, July 9, 2015

इश्‍क की नदी ........




रेशे-रेशे में है टूटन
कुछ नहीं बाकी
पहाड़ी नदी
तट तोड़ बैठेगी
बादलों में घुल गया
जह़र का नीला रंग
बदन भी है नीला-नीला
रहस्‍यमयी सारी का़यनात
झुका है नीला आसमान
जमीं खि‍लखि‍ला रही
दो पाटों के जीन में कसी
इश्‍क की नदी
बेपनाह छटपटा रही ।


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