जब कभी
किसी दिलफ़रेब हक़ीकत से
परदा उठा है
एक खाई खुदी है
यकीन और दो इंसानों
के दरमियां
जो छलता है
वो आंखे उठा नहीं पाता
ख़ुद ब ख़ुद दूर जाने लगता है
जिसे फ़रेब मिला
वो दफ़न हो जाता है
अपने ही हाथों बनाए
ऐसे ताबूत में
जहां प्रेम की दस्तक को
अनसुना कर सके
वो कब
ख़्वाहिशमंद होता है
कि जख़्म देने वाले हाथों को
फिर चूमे, सज़दा करे
पर हुआ यूं भी है कई बार
इस मोहब्बत में
खाई खुदी है, गहरी
एक उस पार, एक इस पार
अब भी खड़े हैं
कोई लौटता नहीं
कोई मुंह मोड़ता नहीं
बस दर्द के समंदर में
जो डूबता है ज्यादा
दूसरा फिर से खींच लेता है बाहर
एक बार और डूबोने को
ये आने-जाने का सिलसिला
क्यों चलता रहता है
तमाम उम्र
कोई जाता है तो पूरे से
क्यों नहीं चला जाता
जो आता है वो
मोहब्बत के अलावा
सब छोड़ कर क्यों नहीं आता
रस्म-ए-उल्फ़त को
पूरी शिद्दत और वफ़ा से
क्यों नहीं निभाता.....।
तस्वीर....कुछ पत्ते झड़े मिले...मेरी ख्वाहिशें की तरह तो खींच ली तस्वीर
1 comment:
जो आता है वो
मोहब्बत के अलावा
सब छोड़ कर क्यों नहीं आता
रस्म-ए-उल्फ़त को
पूरी शिद्दत और वफ़ा से
क्यों नहीं निभाता.....।
...यही तो रोना है संसार में .....हर इंसान अपने जैसा कहाँ मिलता है..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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