रूप-अरूप
रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Thursday, July 30, 2015
एक शाम......
''तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे''
क़ैसर उल ज़ाफ़री साहेब ने यह अशआर किसी ऐसे ही शाम को देखकर लिखा होगा....इन दिनों रोज रंग अलग दिखता है शाम का ...आप भी देखें....
1 comment:
Udan Tashtari
said...
kya baat hai
Friday, July 31, 2015 6:28:00 AM
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kya baat hai
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