अब सिद्ध न रहे
तुमको
वो त्राटक, वो सम्मोहन।
भूल चुके तुम
मारण मोहन उच्चाटन।।
वो सारे वचन।
और हरी घास की चटाई पर
फूल झाड़ते जेकेरेंदा का
वो नीलाभ कंचन।।
अब एक बदली
मेरी मीत बनी, जो
विहान तक ले आई।
चांद पकड़ने की
ये हसरत मेरी, मुझे
दिन अवसान तक ले आई।।
अब उड़ के चली मैं
तज सब बंधन
साक्षी है, नीलंका गगन।।
6 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 24 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
दीदी...
अद्भुत रचना...
चांद पकड़ने की
ये हसरत मेरी, मुझे
दिन अवसान तक ले आई।।
सादर
आपकी हसरत पूरी हो ... चाँद मुट्ठी में हो ...
बढ़िया है रचना बहुत ....
bahut khoob .....
sundar ,mohak abhivyakti
सुंदर रचना ।
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