( 20 मार्च विश्व गौरैया दिवस पर)
“कलसा पानी गरम है, चिड़िया नहावै धूर। चींटी लै अंडा चढ़ै, तौ बरसा भरपूर।”
बचपन में सुनी कहावतें याद रह जाती हैं.....घाघ-भड्डरी की कहावतों में है कि जब गौरैया धूल-स्नान करे तो समझना चाहिए कि बहुत तेज बारिश होने वाली है। पहले बड़े-बूढे प्रकृति से साम्य स्थापित कर मौसम का पूर्वानुमान लगाते थे।
दादी-नानी के नसीहतों के दिन खत्म हुए। ये पांचवा वर्ष है जब 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जा रहा है। 2010 से गौरैया को बचाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। लोग जुड़ भी रहे हैं। पर ये पर्याप्त नहीं है।
गौरैया ऐसी छोटी चिड़िया है जिससे पहले हर घर के लोग परिचित थे। छोटे बच्चे इनके पीछे भागते तो बड़े दाना-पानी का इंतजाम करते थे। एक समय था कि गौरैया हमारी दोस्त थीं। आंगन, छज्जे, ओसारे पर इसके घोंसले होते थे और बहुत आराम से ये हमारे साथ रहती थीं। इन्हें कोई भय नहीं था। इनका फुदकना और अपने छोटे बच्चे के मुंह में दाना लाकर डालते हुए देखना बच्चों के लिए एक अत्यंत कौतूहल का विषय होता था।
मगर अब नई पीढ़ी के बच्चे इन्हें पहचानेंगे भी नहीं। आखिर कैसै पहचाने। न तो वो आंगन रहा न घोसले....और न ही छोटी चिरैया। अब ये विलुप्त प्रजाति में शामिल हो गई हैं। हमने इनका भोजन और आवास खत्म कर दिया तो आधुनिकीकरण की शिकार होकर गौरैया भी कम होने लगी हैं। गौरेया घरेलू पक्षी है। यह चिड़िया कभी भी जंगलों में अपना बसेरा नहीं बसाती। हमेशा घरों में घास-फूस के छप्परों और मकानों में खाली पड़ी जगहों पर घोसलें बनाकर वहां रहती है। शहरी इलाकों में इसकी छह प्रजातियां पाई जाती हैं! हाउस स्पैरो, स्पैनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, डेड सी स्पैरो, और ट्री स्पैरो। इनमें से हाउस स्पैरो हमें अपने घरों में दिखती है। इसके शरीर पर छोटे छोटे पंख,पीली चोंच,पीले पैर होते हैं।लंबाई लगभग 14 से 16सेमी तक होती है। इनमें नर गौरैया का रंग थोड़ा अलग होता है। इसके सर के ऊपर, नीचे का रंग भूरा और गले चोंच और आंखों के पास काला रंग होता है। पैर भूरे होते हैं।
गौरेया की सबसे पहले पहचान 1851 में अमेरिका के ब्रुकलिन इंस्टीटयूट ने करायी थी। गौरैया खेत की फसल में लगने वाले कीड़े से फसलों की सुरक्षा करती है। गौरैया उल्लास का प्रतीक भी माना जाता है। गांवों मे लोग घर की दीवारों पर गैरैया के चित्र बनाया करते हैं। मगर बहुत ही दुखद है कि अब गौरैया और ऐसे ही अनेक छोटे-छोटे चिड़ियों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण कीटनाशक का छिड़काव है....जिसके कारण गौरैया मर रहीं है। साथ ही मोबाइल फोन से निकलने वाली तंरगों के कारण इनके अंडे नष्ट हो जा रहे हैं। और जब अंडे ही नहीं होंगे तो इनका विस्तार कैसे होगा। और मोबाइल तो लगभग आज हर इंसान के हाथ में है। चाहे शहर हो या देहात। इसके अलावा भोजन की भी समस्या हो रही
हैं इन्हें पेटृोल जलाने पर निकलने वाला मिथाइल नाइटृेट छोटे कीटों को समाप्त कर देता है जो कि नन्हें गौरैयों के बच्चों का आहार हुआ करता है। अब बाग-बगीच खत्म तो वहां मिलने वाले छोटे-छोटे कीड़े भी खत्म हो जा रहे हैं। इनके निवास की भी समस्या है अब तो। लोग के घरों में बगीचे नहीं होते अब न ही पहले जैसे छज्जे, जहां ये रह सके। न ही घर की महिलाएं आंगन में गेहूं-चावल फटकती-सुखाती हैं। फास्ट फूड के चलन और पैकेटबंद खाने ने इन नन्हीं चिरैयों का आहार छीन लिया।
इसलिए जरूरी है कि हम 'रेड सूची' मे शामिल इन नन्हें....खूबसूरत आवाज वाले गौरैयों को बचा लें। आंध्र विश्वविघालय के अध्ययन् के मुताबिक गौरैयों की आबादी में 60 फीसदी की कमी आई है। इसलिए समय है संभलने का।हर व्यक्ति अगर व्यक्तिगत प्रयास करे...रोज इन्हें दाना डाले.....गर्मियों में पानी की व्यवस्था करे.....तो कुछ हद तक स्थिति संभल सकती है। वरना......विकास ने तो इनके विनाश के द्धार
खोल ही डाले हैं। आइए......आज हम इन्हें बचाने का संकल्प लें। इन्हें बुलाने के सारे यत्न करें। कहें हम मिलकर..गौरैया आओ मेरे अंगना।
तस्वीर....गांवों में अब तक खूब मिलती हैं गौरैया...पिछले दिनों मैंने ली थी यह तस्वीर शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर...
6 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-03-2015) को "नूतनसम्वत्सर आया है" (चर्चा - 1924) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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भारतीय नववर्ष की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bilkul sahi baat ...p[ahle jab ham jaagte the to inhi chidiyon ki chahchat se ....lekin ab ham nahi jage to inko hi kho denge ..
आज 21/मार्च/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
गौरेया के बारे में बहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति ..शहरों में बहुत कम दीखते हैं गौरेया..जो गंभीर चिंतन का बिंदु है..
मैं आपके बलोग को बहुत पसंद करता है इसमें बहुत सारी जानकारियां है। मेरा भी कार्य कुछ इसी तरह का है और मैं Social work करता हूं। आप मेरी साईट को पढ़ने के लिए यहां पर Click करें-
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