Saturday, March 21, 2015

यादों के दरख्‍़त से गि‍रा एक पत्‍ता......




उस शाम हम देर तक बातेें करते रहे ....आकाश, नदी, फूलों और रंग की.....बातों ही बातों में कब शाम ढली..कब रात खि‍लने लगी, हमें पता ही नहीं चला। 

अचानक घड़ी पर नजर पड़ी.....उफ....11 बजने को है। आज प्रति‍पदा से नौ दि‍न का व्रत शुरू। याद आया, सुबह आॅफि‍स जाने की हड़बड़ी में तुमने पाठ पूरा नहीं कि‍या था। कहा था- शाम जल्‍दी लौटकर दुर्गा सप्‍तशती का पाठ पूरा कर लूंगा। नवरात्र का पहला दि‍न था। गर्मी पूरी चढ़ी नहीं थी। सुबह-शाम कोयल कूकती थी पड़ोसी के आम के पेड़ पर और हम चाय का कप लि‍ए कूक सुनते रहते थे। प्रेम के धागे गुनते रहते थे।

शाम जाने कैसी बात छि‍ड़ी की सब भूल बैठे। वो तो मैंने याद दि‍लाया। तुम तो भूख-प्‍यास तजे बैठे थे मेरे आगे। बातों का सि‍लसि‍ला तोड़ने का मन नहीं था तब भी तुम्‍हारा। मेरी जि‍द पर उठे कि‍ 12 बज गये तो कुछ खा भी नहीं पाओगे।

कहकर उठे.....मेरा इंतजार करो...आता हूं तुरंत। चाय और साबूदाने के साथ हम छत पर बैठेंगे। हल्‍की चांदनी में। अभी और बातें करनी है।

तब हम मि‍ले ही थे .....तुम पल भर को भी मुझसे अलग नहीं होना चाहते थे। बहुत खूबसूरत दि‍न थे न.....

सुनो.....आज का पाठ खत्‍म हो गया न। मैं चाय बना रही हूं...आओगे छत पर...

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम भरी यादें जो हर पल गुदगुदाती हैं ...

Sunil Kumar said...

यादों को संभाल कर रखना , बधाई