एक तिलिस्म बुनती है, रात
सम्मोहित सी मैं ,
घर के पीछे वाली गली में
देखती हूं
तुम बिजली के खंभे की
ओट में छुपकर
मुझे देख रहे हो लगातार !!
सम्मोहित सी मैं ,
घर के पीछे वाली गली में
देखती हूं
तुम बिजली के खंभे की
ओट में छुपकर
मुझे देख रहे हो लगातार !!
गहराता है
धुंआ-धुंआ सा समां
मैं खुद को
एक स़ब्जपरी में
बदलता देखती हूं
अचानक
कैद पाती हूँ ,
जादूगर के महल की
सबसे उपर वाली मंजिल में
रोती-तड़पती !!
धुंआ-धुंआ सा समां
मैं खुद को
एक स़ब्जपरी में
बदलता देखती हूं
अचानक
कैद पाती हूँ ,
जादूगर के महल की
सबसे उपर वाली मंजिल में
रोती-तड़पती !!
तुम शहजादे
सफ़ेद घोड़े से उतरते हो
मैं जैसे इंतज़ार में हूँ
कायनात के आगाज़ से
शायद कल रात से
या शायद आज से
तुम एक कमंद के सहारे
ऊपर आओगे और
मुझे आगोश में भर
साथ लिए
नीचे उतर जाओगे
कैद से आजाद कर,
घोड़े पर सवार
मेरे साथ
दूर देश निकल जाओगे !!
सफ़ेद घोड़े से उतरते हो
मैं जैसे इंतज़ार में हूँ
कायनात के आगाज़ से
शायद कल रात से
या शायद आज से
तुम एक कमंद के सहारे
ऊपर आओगे और
मुझे आगोश में भर
साथ लिए
नीचे उतर जाओगे
कैद से आजाद कर,
घोड़े पर सवार
मेरे साथ
दूर देश निकल जाओगे !!
तभी
रात का तिलिस्म टूटता है
तुम अपनी कार बैक कर रहे हो
तुम्हारे हाथ अलविदा कहते
लहरा रहे हैं
मैं जान रही हूँ
अब इस गली में
तुम नहीं आओगे दोबारा !!
रात का तिलिस्म टूटता है
तुम अपनी कार बैक कर रहे हो
तुम्हारे हाथ अलविदा कहते
लहरा रहे हैं
मैं जान रही हूँ
अब इस गली में
तुम नहीं आओगे दोबारा !!
पर रात है कि ,रोज़
नया तिलिस्म बुनती है
और ,ठीक उसी पहर में
मैं अपनी बॉलकनी से नीचे
झांकती हूं ,
करती हूं इंतजार
सफ़ेद घोड़े पर आने वाले
उस शहजादे का
अब रोज
ये रात हंसती है,
फिर से
कोई नया तिलिस्म बुनती है !!
नया तिलिस्म बुनती है
और ,ठीक उसी पहर में
मैं अपनी बॉलकनी से नीचे
झांकती हूं ,
करती हूं इंतजार
सफ़ेद घोड़े पर आने वाले
उस शहजादे का
अब रोज
ये रात हंसती है,
फिर से
कोई नया तिलिस्म बुनती है !!
my photography
1 comment:
बहुत सुंदर कविता।
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