बस आज और कल......विश्व पुस्तक मेला समाप्त.....................जिन मित्रों ने बोधि प्रकाशन के हॉल नं 12-12 A, स्टॉल नं 27-28 की सेल्फ में सजी किताब.....'नदी को सोचने दो' नहीं देखा......
देख आइए .....मेरा पहला एकल संग्रह है.....
यकीनन मुझे अच्छा लगेगा..... :) :) :) :)
2 comments:
तेरा आना और तेरा जाना दोनों ही कष्ट जन्य थे
,बस गम है तो ये कि हम ही इस से बेखबर थे
सुन्दर रचना रश्मिजी
बधाई हो जी ...
मौका मिला तो संलन लेने का प्रयास करेंगे ..
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