बंद रहती थी मेरी मुट्ठी
नीला आसमान
खाली-खाली था
सुगबुगाते सपने
फड़फड़ाते थे पर
पंछियों की तरह
परवाज को आतुर
मैं डरती थी अब
ऊंची उड़ान से
सुंदर सपनों के
बिहान से
अच्छा लगता था
आकाश पर
सफ़ेद बादलों का बसेरा
सतरंगी किरणों का डेरा
और जोर से
भींचती थी मुट्ठियां
सब कुछ
यूं ही रहे, यथावत
अाज देखा
बड़े चमकीले सितारों से
सजा है आसमान
हैं झिलमिल करते
चांद - तारे
पाया मैंने
मुट्ठियां खुली हैं
दोनों हाथ खाली
और भरा-भरा है आसमान ....।
5 comments:
जिन दिनों
बंद रहती थी मेरी मुट्ठी
नीला आसमान
खाली-खाली था
बहुत बहुत सूंदर..
http://themissedbeat.blogspot.in/?m=1
ऊंची उड़ान हिम्मत के साथ हमेशा खुला आसमान देती है ...
अच्छी रचना ...
सुन्दर रचना
gahre bhaw ......
बहुत सुन्दर........
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