वेलंटाइन ....न...हम नहीं जानते थे । पर यही दिन रहे होंगे। फागुन का महीना। भरी दोपहरी तुम कच्ची दीवार फांदकर घुसे थे...घर के पीछे वाले बागीचे में। हाथ पीछे किए।
देखा... हाथों में था पुटूस का फूल।
झेंप गए तुम....कहा...रास्ते में था, अच्छा लगा सो ले लिया...रख लो न। मेरे हाथों से पीले रंग का रूमाल खींच माथे का पसीना पोंछा और वापस थमा दिया।
हंसकर कहा.... मेरे पसीने की खुश्बू है, संभाल के रखियो।
चल अब पानी पिला.....कहीं मां ने देख लिया तो डंडा ले दौड़ाएगी..... भागना है अब
आह.....तृप्त हो गिलास जमीन पर धरा....एक नजर देखा....हंसकर कहा....जल्दी मिलूंगा
दूसरे पल एक पैर दीवार पर......धम्म नीचे.....ये जा..वो जा....
टीन के बक्से की तह में वो पीला रूमाल आज भी दबा है.....तुम्हारे होठों के कोर में छिपी मुस्कान की तरह.....
जाने कितने फागुन बीते....
ये पुटूस का फूल....अब भी खिला है....मन की बगिया में..
2 comments:
:)प्यारी हो गयी सुबह ऐसी प्यारी सी पोस्ट पढ़कर… पुटूस के फूल… धन्यवाद।
बहुत सुंदर.मीठी यादें होती ही ऐसी हैं.
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