बात करने को कोई बशर चाहिए !!
इस दश्त में भी अब शहर चाहिए !!
इस दश्त में भी अब शहर चाहिए !!
फरिश्तों की खामोख्याली जाने दे ,
अब दुआ इंसानी बा –असर चाहिए !!
बहती नदी ने संग भी तराश लिए ,
बुते–जानां की भी अब खबर चाहिए !!
बुते–जानां की भी अब खबर चाहिए !!
झुलसी शाखों से परिन्दे उड़ते गये ,
मन को अब झूले वाला शज़र चाहिए !!
मन को अब झूले वाला शज़र चाहिए !!
आ अफसुर्दा फ़साने के नक्श मिटा दे ,
इस चेहरे पे तेरी आँखों के कहर चाहिए !!
इस चेहरे पे तेरी आँखों के कहर चाहिए !!
अल्फाज के अंधेर में खोने लगी हूँ मैं ,
उफक में उगते सूरज के मंज़र चाहिए !!
उफक में उगते सूरज के मंज़र चाहिए !!
कातिब हूँ फसानाए-बेबसी लिखती रही ,
आबे-चश्म की रवानी शामो सहर चाहिए !!
आबे-चश्म की रवानी शामो सहर चाहिए !!
उन के इसरार पे ग़ज़ल लिख तो लिए
मांगी है अब ,उन के जैसी बहर चाहिए !!
मांगी है अब ,उन के जैसी बहर चाहिए !!
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