Saturday, January 31, 2015

टूट गया नाता.....


सांझ....
संकेत है कि छानेवाला है
अंधेरा....
ये किसी का षडयंत्र नहीं,
प्रकृति है....
नई सुबह के लिए
.....
अभी-अभी ढली शाम ने
कहा है
न भूलना मुझे
न आज की शाम को
.......
कुछ कच्चे रंग थे....उतर गए
कुछ रिश्तों के डाेर...टूट गए
शाम .... तुझसे है नाता पुराना
जो साथ थे वो पीछे...छूट गए

तस्‍वीर कल शाम की......

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-02-2015) को "जिन्दगी की जंग में" (चर्चा-1876) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ..
शाम आती है तो दिन पीछे छूट ही जाता है .. पर फिर नयी सुबह भी आती है रात के बाद ...