Monday, August 25, 2014

मन और प्रेम

1. 
मन कपूर भी होता है क्‍या
बाहर से दि‍खती है
साबुत पुड़ि‍या
और अंदर सब हवा-हवा
क्‍यों खो देता है
प्रेम अपना वजूद।

2.
मन रंगीन कपड़ा है क्‍या
तहाकर रखा हो
अलमारी के सबसे
नीचे वाले खाने में
और एक दि‍न नि‍कालो
तो रंग सारे उड़े-उड़े
प्रेम कच्‍चे रंग से
रंगा था क्‍या रंगरेजा।

3.
मन पुराना अलबम सा है क्‍या
सहेजकर रखी हो जि‍समें
जिंदगी की
सबसे सुंदर यादें
कुछ बरस बाद सारी तस्‍वीरें
धुंधली पड़ जाए
प्रेम पर वक्‍त की गर्द
इतनी जल्‍दी क्‍यों जमती है।

तस्‍वीर....नदी के सेवार में उलझा एक दि‍या...

9 comments:

प्रतिभा सक्सेना said...

कोई नहीं जान पाया मन क्या है -एक पहेली वह भी निरंतर रूप बदलती हुई ,कभी थिर नहीं होता मन !

निर्मला कपिला said...

संवेदनायें वक्त की चसल के अनुरूप खुद को ढाल लेती हैं1
ताक पर रख दर्द आँसू पी लिये
ज़िन्दगी का हाथ थामा जी लिये

रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के लिए चुरा ली गई है- चर्चा मंच पर ।। आइये हमें खरी खोटी सुनाइए --

dr.mahendrag said...

जैसा समझो वैसा मन , मन, मन, मन बस मन ही मन
सुन्दर अभिव्यक्ति

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया

मन के - मनके said...

सुंदर,मन की खोज

मन के - मनके said...

सुंदर---मन की खोज

abhi said...

मन.. :)

बहुत बहुत सुन्दर !!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बहुत सुन्दर रचनाएँ, बधाई.