हम डरते हैं
चुप्पियों से
तल्खियों से
सवालों से
और सफाइयां देने से
क्योंकि
वक्त और
अनुभवों ने
पैने कर दिए हैं
हमारे पंजे
अब हम सुनते नहीं
सहते नहीं
बस
आक्रमण करते हैं
क्योंकि
पटखनी देकर
आगे निकलना
अब स्वभाव नहीं
जरूरत है
अब हम
मनुष्य नहीं
पशुवत हैं
अपने नाखून और दांत
पजा रहे हैं
कर रहे हैं खुद को तैयार
क्योंकि
कभी भी किसी पर भी
मारना पड़ सकता है
झपट्टा
अब कोई नहीं दोस्त
न कोई रह गया अपना
सारे प्रतिद्वंधि हैं
जिन्हें परास्त कर ही
जिंदगी की दौड़ में
आगे निकल सकते हैं।
6 comments:
आज का ऐसा कड़वा सच है जो जाने अनजाने सबके व्यक्तिव का हिस्सा बनता गया है।
बहुत सुंदर
सुंदर प्रस्तुति
बहुत बढ़िया
वाह ...
बहुत ही बढ़िया
सादर
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