Sunday, March 9, 2014

कल कि‍सने देखा है


ये सूनी सी शाम
ढलता सूरज
और मेरे मन का
काला धुआं.........

ये ढांप लेगी
उस उजले कोने को
जि‍से
बेदाग रखने का
वचन दि‍या था खुद को......

देखो
कुछ डूबने को है
लीलने को आतुर है
सारी लालि‍मा को
कि‍सी के आंख का काजल.....

ये शाम फि‍र न आएगी
सूने खेत सा मन
न होने पर पैदावार
बंजर बन जाता है......

जाओ
कि‍ इस ऊब और डूब में
हम परछाईं थामे रहते हैं
वाकई
कल कि‍सने देखा है

तस्‍वीर...मेरे गांव की

4 comments:

Arun sathi said...

बेहतरीन प्रस्तुति

Arun sathi said...

बेहतरीन प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा said...

किसी ने नहीं देखा कल .. बस कुछ अश्पष्ट से चित्र है जो उभरते हैं पटल पर ...

Aditi Poonam said...

बहुत सुंदर रचना रश्मि जी