Thursday, January 9, 2014

प्रेम....ऐसा ही होता है......


मैं
मंत्रमुग्‍ध नहीं
मंत्रबिद्ध हो जाती हूं
जब
ओम की तरह
गूंजती है कानों में
तुम्‍हारी ध्‍वनि

मैं 
ध्‍यान में होती हूं

हो रहा होता है
खुद से साक्षात्‍कार
जब एक गहरी आवाज
खींच ले जाती है
मुझे अनंत में.....

हां....
लीन होना
ऐसा ही होता है
चाहे ईश्‍वर में हो
या कि‍सी इंसान में

प्रेम....ऐसा ही होता है......


तस्‍वीर..साभार गूगल 

7 comments:

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीया-

Jyoti khare said...


बहुत सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई ---

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !

Onkar said...

बहुत खूबसूरत

कालीपद "प्रसाद" said...

सुन्दर प्रस्तुति !
नई पोस्ट आम आदमी !
नई पोस्ट लघु कथा

केवल राम said...

मैं
ध्‍यान में होती हूं
हो रहा होता है
खुद से साक्षात्‍कार
जब एक गहरी आवाज
खींच ले जाती है
मुझे अनंत में.....

बेहतर भावाभिव्यक्ति .....!!!

Himkar Shyam said...

उम्दा रचना, बहुत खूब लिखा है .
http://himkarshyam.blogspot.in/