रात
आया था ख्वाब
एक जंगल में
अकेले
खामोश चलते जाने का
शायद
यह नियति थी
मगर
कुछ मीठे, कुछ रूखे
अहसास जगाते
से शब्द
मेरी थाती बन गए हैं
तुम्हें भी पता है
नहीं देखा मैंनें
एक बार भी
गौर से तुम्हारा चेहरा
न झांका
उन गहरी आंखों में
जहां शायद
मेरे ही
ख्वाब तैरा करते हैं
जो शब्द बन
हर वक्त मुझे
घेरे रहते हैं
अब खामोशियों के
जंगल से
निकलकर
सितारों की छांव में हूं
ये तुम्हारी ही यादें हैं
जिनकी गिरफ्त में
कल रात से हूं.......
अभी-अभी छत पर उतर आया चांद.....
7 comments:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !
एक एहसास जो ख़्वाबों के जरिये दिल में उतर गया ...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !
अब खामोशियों के
जंगल से
निकलकर
सितारों की छांव में हूं
ये तुम्हारी ही यादें हैं
जिनकी गिरफ्त में
कल रात से हूं.......
...बहुत सुन्दर...भावों और शब्दों का बहुत सुन्दर संयोजन...
मगर
कुछ मीठे, कुछ रूखे
अहसास जगाते
से शब्द
मेरी थाती बन गए हैं
..सच दिल में एक बार उतरे जो वे फिर दिल कभी दूर नहीं होते..
बहुत बढ़िया रचना ..
काफी उम्दा रचना....बधाई...
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आभार
रश्मि जी वास्तव में ही बहुत सुंदर रचना है.
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