Monday, October 7, 2013

जिंदगी शाम है......


जिंदगी शाम है
मैं सूना तट
और तुम समुंदर

गहराती रात के साथ
दूर होता जाता है
समुंदर
और वीरान होता है
सूखा तट
लहरों से बि‍छड़ने का
होता है
तीव्र मलाल

दर्द भरी हसरत लि‍ए
जागती है रात
आकुल हो राह
तकती है समंदर की
कि भोर की पहली कि‍रण देख
आवेग भरी लहरें
उद़दात होंगी
समुंदर को भी
तट से बि‍छुड़ने का
अहसास होगा

आएंगी लहरें,
प्‍यार लि‍ए
देने का अभि‍मान लि‍ए
भिंगोएगी
बार-बार और
लौट जाएंगी लहरें
फि‍र ढलेगी शाम
क्‍योंकि

जिंदगी शाम है
मैं सूना तट
और तुम समुंदर

तस्‍वीर...अरब सागर के कि‍नारे एक शाम की

9 comments:

Unknown said...

खुबसूरत सी रचना ।

मेरी नई रचना :- सन्नाटा

रविकर said...

बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीया-
नवरात्रि की शुभकामनायें-

राजीव कुमार झा said...

बहुत खूबसूरत रचना .
नवरात्रि की शुभकामनाएँ .

पूरण खण्डेलवाल said...

सुन्दर प्रस्तुति !!

मेरा मन पंछी सा said...

बेहद सुन्दर रचना...
:-)

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना है
जिंदगी शाम है
मैं सुना तट
और तुम समंदर
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं
आपकी अन्य कविताये "शब्द संवाद" में पढीं सभी कविताये दिल को छू गयी

Unknown said...

सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन

http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
नवरात्रि की शुभकामनाएँ!

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
नवरात्रि की शुभकामनाएँ!