उम्मीदे-पैरहन पर ....
जख्म दिल का और भी गहरा होता गया !
बद-गुमान मसीहा तू संगदिल होता गया !!
खाकर फ़रेब बेशुमार भी ना समझा दिल !
उस संगदिल से ही आशना होता गया !!
जिसे है फख्र अपनी चाक-दामनी पर 'रश्मि' !
दिल उसी के उम्मीदे-पैरहन पर रोता गया !!
तस्वीर--साभार गूगल
3 comments:
तीनों शेर लाजवाब …
बहुत सुंदर बेहतरीन गजल !
नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
जख्म दिल का और भी गहरा होता गया !
बद-गुमान मसीहा तू संगदिल होता गया !! excellent ..
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