Wednesday, September 25, 2013

उम्मीदे-पैरहन पर ....


जख्म दि‍ल का और भी गहरा होता गया ! 
बद-गुमान मसीहा तू संगदिल होता गया !!

खाकर फ़रेब बेशुमार भी ना समझा दि‍ल ! 
उस संगदिल से ही आशना होता गया !!

जिसे है फख्र अपनी चाक-दामनी पर 'रश्मि' ! 
दि‍ल उसी के उम्मीदे-पैरहन पर रोता गया !!

तस्‍वीर--साभार गूगल 

3 comments:

Aparna Bose said...

तीनों शेर लाजवाब …

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर बेहतरीन गजल !

नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )

Dr.NISHA MAHARANA said...

जख्म दि‍ल का और भी गहरा होता गया !
बद-गुमान मसीहा तू संगदिल होता गया !! excellent ..