Thursday, September 19, 2013

एक बूंद का दामन.....


बूंदों को तुम सहेजो
मि‍लो नदी में...
बन जाओ समुद़ की उ़दात लहरें
मैं दे दूंगी तुमको
संचित एक बूंद जीवन की
और बन जाउंगी
सूखा रेगि‍स्‍तान
कि‍( जब
हममें कोई मेल नहीं
क्‍यों पकड़ें एक बूंद का दामन.......


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कि‍स बात पे हैरां हो तुम
कि‍स बात पे है ये खामोशी
मतलब पड़ने पर ही दुनि‍यां
 कि‍या करती है कदमब़ोसी 

5 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर भाव......

अनु

Darshan jangra said...

सुन्दर भाव......

Anonymous said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...

Sarik Khan Filmcritic said...

बहुत बेहतरीन