Tuesday, August 6, 2013

सपनों के सि‍तारे टांक दूं ..


एक आह तड़प उठी
ख्‍वाहि‍शों की 
तलछट से
कह दो तो
उम्र की कोरी ओढ़नी पर
सपनों के सि‍तारे टांक दूं ..

शबनम सी झरती है
शब भर याद
चाहत मेरी
और वो बेख्‍याल
अब कर दो हद मुकर्रर
कि कलम कागज के लि‍ए
है बेकरार ...

7 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर......
अनु

विभूति" said...

भावो को संजोये रचना.....

Asha Joglekar said...

इस कलम को कागज मिले और साकर हों ये अनोखे भाव ।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही खूबसूरत.

रामराम.

Aparna Bose said...

BEHAD KHOOBSURAT RASHMI JI

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत बढ़िया !
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
latest post,नेताजी कहीन है।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

भावों की लाजबाब अभिव्यक्ति,,,

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